अजित राय की याद
पिछले से पिछले महीने की 22 तारीख को एक गैर रवायती जिंदगी जीने के बाद अजित राय ने वैसी ही गैर-रवायती मौत को गले लगा लिया। वो लंदन में एक मित्र-परिवार में रुके हुए थे , जहाँ रात को नींद में ही उन्होंने अंतिम साँस ली। उनका निधन हृदयाघात से हुआ। डॉक्टरों ने उन्हें अतिशीघ्र पेसमेकर लगवाने की सलाह दी थी , जिसे लंदन में महँगा होने के कारण उन्होंने भारत में लगवाना उचित समझा। इसके लिए वे फ्लाइट की टिकट सस्ती होने का इंतजार कर रहे थे ताकि शीघ्र देश लौट सकें। लेकिन नियति ने उन्हें यह मौका नहीं दिया। अजित राय ठोस लक्ष्य बनाकर जीने वाले इंसान थे। वायवीयता से उन्हें सख्त नफरत थी। उनका ध्येय हमेशा मछली की आँख की तरह उनके सामने स्पष्ट होता था। यह तब भी उनके सामने उतना ही स्पष्ट रहा होगा जब वे बक्सर स्थित अपने गाँव से पटना के लिए निकले होंगे। या फिर जब वो पटना से गया और इलाहाबाद के पड़ावों को पार करते हुए दिल्ली पहुँचे होंगे। मेरा उनसे रूबरू वाला परिचय सन 1999 में हुआ था। तब मैंने जनसत्ता में रंग-समीक्षा का स्तंभ लिखना शुरू किया था जहाँ वो उस वक्त साहित्य और संस्कृति से जुड़े विषयों की रिपोर्टिंग...