एक कलाकार की यात्रा
रंगकर्मी-पत्रकार आलोक शुक्ला की पुस्तक ‘एक रंगकर्मी की यात्रा’ एक पठनीय आत्मकथ्य है। हालाँकि आत्मकथ्य के बजाय इसे खुद का चिट्ठा कहना ज्यादा बेहतर होगा, क्योंकि इसमें गुजरे जीवन के तमाम अच्छे-बुरे प्रसंग बेलाग तरह से लिख दिए गए हैं। इस क्रम में नाकाम मोहब्बत की दास्तान से लेकर फिल्मी दुनिया में मिले धोखों को एक जैसी सहजता से बताया गया है। पुस्तक में कोई गहरा आत्ममनन तो नहीं पर एक दुनियादार आत्मालोचना अवश्य है। होम टाउन रीवा से लेकर मुंबई होते हुए दिल्ली तक के इस सफर में उन्होंने कई तरह के काम किए, जिनमें सचमुच की सीआईडी में काम करने से लेकर ‘एफआईआर’ और ‘पुलिस फाइल’ जैसे सीरियलों में काम करने तक के अनुभव शामिल हैं। सिनेमा-टीवी-रंगमंच में अभिनय के साथ-साथ मीडिया में काम किया। बासु चटर्जी, सागर सरहदी और हबीब तनवीर जैसी हस्तियों के संपर्क में आए। हबीब तनवीर के ग्रुप में जर्मनी की यात्रा की। और इस क्रम में इस यात्रा से जुड़े व्यवधानों और उनके निराकरण का उतार-चढ़ाव से भरा दिलचस्प किस्सा भी पुस्तक का हिस्सा बन गया है। हबीब तनवीर शंगेन वीजा चाहते थे जिसके लिए एंबेसी तैयार नहीं थी। इस अड़ंगे स