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मर्चेंट ऑफ वेनिस के बहाने

पिछले दिनों बापी बोस ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय छात्रों के लिए नाटक ‘मर्चेंट ऑफ वेनिस’ निर्देशित किया। उन्होंने पूछा- कैसा लगा नाटक? मैंने बात को घुमाते हुए कहा- कई लोग तो तारीफ कर रहे थे, कुछ को तो काफी अच्छा लगा। उन्होंने फिर दोहराया- आपको कैसा लगा? मैं- मुझे तो यथार्थवादी ट्रीटमेंट ही पसंद आता है। वो- शेक्सपीयर का नाटक यथार्थवादी नहीं है। मैं- उस अर्थ में यथार्थवादी न सही, पर शेक्सपीयर के अपने स्टाइल का यथार्थवाद (जिस वजह से ब्रेख्त का आर्तुरो उई शेक्सपीयरियन तौर-तरीके सीखता है) तो है... वो- वो स्टाइल उन्होंने निर्माण किया है और दुनिया भर में फैलाया है। लेकिन शेक्सपीयर रियलिस्टिक कैसे हो सकता है? उसकी आधुनिक व्याख्या हो सकती है, हम उसमें रियलिज्म की कुछ चीजें जरूर इस्तेमाल करते हैं, विशेष रूप से एक्टिंग में, क्योंकि इस विषय पर जर्मन एक्सप्रेशनिस्ट्स ने काफी काम किया है। उसका प्रेजेंटेशन ग्रैंड होता है लेकिन एक्टिंग एक लॉजिक पर स्थिर होकर शेप लेती है। मैं- ये बताइये, पोर्शिया जब घर से निकल रही है तो जो जिप वाले सूटकेस दिखाए हैं वो क्या शेक्सपीयर के जमाने में चलते थे? वो- इसको कही