पिता की याद
मेरे पिता दुनियादारी के लिहाज से नितांत अव्यावहारिक इंसान थे। एक गृहस्थ की सलाहियत उनमें ज्यादा नहीं थी। दरअसल वे एक सुखवादी व्यक्ति थे। कोई भी समस्या उनके लिए बहुत बड़ी नहीं थी। इसीलिए आसन्न समस्याओं को लेकर भी उनके पास कोई योजना नहीं होती थी। कई बार समस्या जब बड़ी होकर सिर पर आ खड़ी होती तो वे अपने बिस्तर पर जाकर सो जाते। उनका यह स्वभाव उनके दांपत्य को निरंतर कलहपूर्ण बनाए रखता। मेरी माँ उनकी सनातन विरोधी थीं। असल में वो हर किसी की विरोधी थीं, और स्वयं की प्रबल समर्थक थीं। कलह का एक कारण उनके पास हमेशा मौजूद होता—अनियमित और अपर्याप्त आमदनी। पिता ज्यादातर समय अस्थायी नौकरियाँ या फ्रीलांस काम ही करते रहे। इस तरह किल्लत और कलह से युक्त हमारे घर के इस वातावरण में बीती 27 नवंबर को मेरी माँ के दिवंगत होने तक 60 साल पुराना उनका दांपत्य अटूट चलता रहा। 0000 सन 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के अगले से अगले रोज जब सिख विरोधी हिंसा भड़की हुई थी, एक घटना घटी। एक व्यक्ति साइकिल के कैरियर पर कपड़े धोने के पीले साबुन का 15-20 किलो का एक गट्ठा हमारे गेट पर रखकर हड़बड़ी में चला गया। किसी ने बताया