बचा रहने वाला काम
जीवन में कई तरह के लोग मिलते हैं. ज्यादातर अपनी निजी जरूरतों-हसरतों के प्रश्न से जूझते. लेकिन कुछ दिन पहले दफ्तर में मिले सुमित की समस्या यह थी कि आज के इतने पतित हो गए सामाजिक हालात में जीवन कैसे जिया जाए. कि सारा माहौल इतना संवेदनहीन और विवेकशून्यता से भरा मालूम देता है कि आपका सारा जानना-समझना-पढ़ना-सोचना आपको कुंठा के अलावा कुछ और नहीं देता. मैंने ठीक-ठीक सुमित का दृष्टिकोण जानना चाहा तो उसने मुझे एक घटना सुनाई. एक दलित लड़की के साथ एक दबंग जाति के आठ लड़कों ने बलात्कार किया. मामला थाने पहुंचा, तो पुलिस ने लड़की की मेडिकल जांच कराई. जांच रिपोर्ट में कहा गया कि लड़की के साथ कोई बलात्कार नहीं हुआ है, लिहाजा एफआईआर दर्ज नहीं की गई. लेकिन इसके कुछ ही रोज में ऐसा हुआ कि लड़की से हुए कुकर्म की खुद बलात्कारियों द्वारा बनाई गई विडियो क्लिप सार्वजनिक हो गई. उसकी सीडी और एमएमएस जब बहुतों के पास पहुंच गए तो इस प्रत्यक्ष सबूत के दबाव में पुलिस को मामला दर्ज करने के लिए बाध्य होना पड़ा. पर न्याय की गुहार के इस प्राथमिक चरण तक पहुंचने तक लड़की इतना कुछ झेल चुकी थी कि उसने आत्महत्या कर ली. सु