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फैज के बारे में

फैज अहमद फैज की जन्मशताब्दी के प्रसंग से पिछले एक-डेढ़ सालों में उनपर केंद्रित कई नाटक खेले गए हैं ;  बावजूद इसके कि फैज के किरदार में कोई  ‘ नाटकीय ’  पहलू खास नजर नहीं आता। इन प्रस्तुतियों को देखने से जितना समझ आता है वह ये कि वे कोट-पैंट पहनने वाले और अमूमन सुलझी शख्सियत के इंसान थे। न कि दुनिया की बेढंगी चालों से बेजार पी-पी कर अपना कलेजा गर्क करने वाले  मंटो की तरह के  शख्स। फैज की शायरी भी- जितना मालूम देता है- उदभावनाओं की शायरी है। न वे मजाज हैं, न शमशेर...और भुवनेश्वर तो बिल्कुल ही नहीं ;  संयोग से जिनकी जन्म शताब्दियाँ भी इधर हाल में बगैर किसी संस्मरण के चुपचाप गुजरी हैं। अपनी रौ में सांसारिकता से बेखुद अदीबाना शख्सियत फैज की नहीं थी। वे एक चुस्त, चौकन्ने, जुझारू, प्रगतिशील और रोमांटिक तबियत के व्यक्ति थे। रामजी बाली लिखित, निर्देशित, अभिनीत प्रस्तुति  ‘ मुझसे पहले सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग ’  फैज के जीवन पर देखी कुछ पिछली प्रस्तुतियों से ज्यादा चुस्त मालूम देती है। उन्हें इस साल संगीत नाटक अकादेमी ने नाट्य लेखन के लिए उस्ताद बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार से सम्मानित किया

बात पाँचवें वेद की

रंगकर्मी दंपती वीके और किरण की रंग शैली का प्रवाह देखने ही बनता है। अपनी नई प्रस्तुति ‘ रहस्य पंचम वेद का ’ में उन्होंने नाटक के इतिहास और सिद्धांत को मंच पर पेश किया है, और वो भी बच्चो के एक खासे बड़े दल के साथ। रामजस स्कूल , पूसा रोड के छात्रों की इस प्रस्तुति में मंच पर जमा बच्चे नाटक खेलने के बारे में बात कर रहे हैं। उनका टीचर एक चीनी कहावत के बारे में बताता है कि सुनी हुई बातें भूल जाती हैं , देखी हुई याद रहती हैं , और की हुई समझ आती हैं। एक बच्चा बताता है कि उसके पुराने स्कूल के प्रिंसिपल नाटक के खिलाफ थे कि इससे पढ़ाई का हर्जा होता है। नाटक बनाम पढ़ाई के इस झगड़े में मूँछ लगाए बाप बेटे को डाँट रहा है, पर बेटा भी गुस्सैल तेवरों वाला है। उसके गुस्से में कहे ‘ ...पापा !’ के साथ सीन कट हो जाता है, और पात्रों का हुजूम एक कोरस के लिए प्रस्तुत हो जाता है : ‘ रंगमंच है दुनिया सारी / हम सब केवल अभिनेता ’ । पीछे स्क्रीन पर शेक्सपीयर की तस्वीर उभरी हुई है। शेक्सपीयर ने ही दुनिया को एक स्टेज बताया था, जहां बच्चा पैदा होते ही तरह-तरह के ड्रामे देखने लगता है। एक सास-बहू गोद में एक नवज