गणिकागृह में एक रात
ज्ञानपीठ से पुरस्कृत कन्नड़ नाटककार चंद्रशेखर कंबार के नए नाटक शिवरात्रि को उनका सबसे अच्छा नाटक भी माना जा रहा है। चिदंबरराव जांबे निर्देशित मैसूर के निरंतर थिएटर ग्रुप की इसकी प्रस्तुति भारत रंग महोत्सव में देखी थी. किसी वजह से इसपर लिखा नहीं जा सका, पर तब से कहीं न कहीं यह दिमाग में अटकी रही है। इसका कथानक बारहवीं सदी के कल्याण राज्य के एक वेश्यालय में शिवरात्रि की रात को घटित होता है। कोठे की मुखिया साविंतरी के पास संगैय्या नाम का साधु-युवक आया है जिसे कोठे की सबसे सुंदर वेश्या कामाक्षी के साथ उसी के बिस्तर पर शिवलिंग-पूजा का अनुष्ठान करना है (इस पूजा के संदर्भ को समझने के लिए बारहवीं सदी में कर्नाटक में हुए शरणा आंदोलन को समझना होगा, जिसके जनक वासवन्ना ने शिवलिंग के एक प्रकार इष्टलिंग को ईश्वर के एक प्रतीक के रूप में हर मनुष्य की देह में अवस्थित माना, जिसकी वजह से कोई भी अस्पृश्य नहीं है। शरणा आंदोलन जाति व्यवस्था और सामाजिक अन्याय के विरोध का आंदोलन था)। यह पता चलने पर कि कामाक्षी कोठे की सबसे महंगी गणिका है, संगैय्या एक महंगा हार प्रस्तुत करता है। इस तरह उसके इच्छित अनुष्ठान