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बारह बजे सुन सइयां की बोली

दिल्ली के तालकटोरा गार्डन में हिंदी अकादमी की ओर से कानपुर शैली की नौटंकी 'सुल्ताना डाकू' का मंचन किया गया। नौटंकी जुमलेबाजी में रस लेने वाले भारतीय मानस की कला है। पाकिस्तान में 'बकरा किस्तों पर' जैसे रूप भी इसी मानस की चीज हैं। यह मूलतः एक वाचिक नाट्य है जिसमें असली कलाकार माइक है। कानपुर की प्रसिद्ध दि ग्रेट गुलाबबाई थिएट्रिकल कंपनी की इस प्रस्तुति में मंच पर चार-पांच माइक खड़े कर दिए गए हैं, जिन्हें ऐ मालिक तेरे बंदे हम की वंदना के बाद पात्रों ने संभाल लिया है। पहले ही दृश्य में तमाम डाकू शराब पी रहे हैं। वे संवाद बोलने से पहले माइक टेस्टिंग की हलो बोलते हैं। एक मशहूर धार्मिक धुन की तर्ज पर 'फटाफट जाम पिला दे' बज रहा है और ज़ाहिद के बजाय साकी से मस्जिद में बैठकर पीने देने की मिन्नत की जा रही है कि सुल्ताना आकर उनपर कोड़े बरसाना शुरू कर देता है। उसे खुंदक है कि साहब बहादुर उसे लंदन से पकड़ने आ रहे हैं, लखनऊ पार्लियामेंट में हंगामा मचा हुआ है, और 'आप यहां शराब पी रहे हैं'। आगे के दृश्यों में साहब बहादुर मिस्टर यंग पुलिस वाले से बोलता है- तुम बड़ा कुत

चीन की अभागी खलनायिका

बीते साल भारत रंग महोत्सव में चीन की प्रस्तुति 'अमोरॉस लोटस पैन' का प्रदर्शन किया गया था। यह प्रस्तुति इस बात का अच्छा उदाहरण है कि कैसे शैलीगत प्रयोगों के साथ विषय के तनाव और प्रवाह को बरकरार रखा जा सकता है। प्रस्तुति की केंद्रीय किरदार पैन जिनलियान चीन के एक प्रसिद्ध क्लासिक उपन्यास की पात्र है। सामान्यतः उसकी एक खल-सुंदरी की छवि है, जो अपने पति को धोखा देती है। लेकिन निर्देशक चेन गांग उसकी त्रासदी को उसके व्यक्तित्व और भाग्य के टकराव के अनिवार्य परिणाम के तौर पर देखते हैं। उसकी त्रासदी से जुड़े कई सवाल हैं जिन्हें अंत में यह प्रस्तुति दर्शकों के आगे छोड़ जाती है। मंच पर पीछे की ओर दरवाजे के आकार के फ्रेमों की एक दीवार है। प्रस्तुति के शुरू में एक फ्रेम में से एक पात्र निकलकर आता है और बताता है कि वो एक महान प्रतिभा वाला एक प्रसिद्ध लेखक है। इसी बीच उसके आसपास बहुत से लोग जमा हो जाते हैं और उससे उसके किरदार पैन जिनलियान और उसकी नियति को लेकर सवाल पूछते हैं। इसके कुछ देर बाद पैन जिनलियान खुद मंच पर दिखाई देती है जो छोटी उम्र में अनाथ हो गई थी और उसे झंग दाहू नाम के एक धनी व्यक

मुस्कुराता हुआ विद्रूप

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अंतिम वर्ष के छात्रों की प्रस्तुति 'ड्राइव' एक लाइव थिएटर एग्जीबिशन की तरह है। सजीव छवियों की प्रदर्शनी। इसके लिए अभिमंच प्रेक्षागृह के मंच के आयताकार स्पेस में कई केबिन तैयार किए गए हैं। दर्शक इनके सामने से गुजरते हैं। रुककर अभिनीत की जा रही छवि को देखते हैं और फिर अगले केबिन की ओर बढ़ जाते हैं। प्रस्तुति के निर्देशक स्विटजरलैंड के डेनिस मैल्लेफर ने छात्र-छात्राओं के लिए दो विषय चुने-- ऑटो रिक्शा ड्राइवर और वुमेन ट्रैफिक कांस्टेबल। उन्हें वास्तविक जीवन में जाकर इन पात्रों के संपर्क में आना था। उनके निजी और पेशागत पहलुओं को जानना था और इस तरह उनकी शख्सियत की थाह लेनी थी। निर्देशक ने उनसे कहा कि इस प्रक्रिया में अर्जित की गई छवि को वे हूबहू चित्रित न करें, बल्कि जिंदगी के एक रवैये के तौर पर, एक विवरण की तरह उपयोग करें। फिर इस कच्चे माल से वे एक नए लेकिन विशिष्ट चरित्र की सर्जना करें। 'ऐसा चरित्र जिसका कोई लक्ष्य, कोई इच्छा, कोई राज, कोई कमजोरी हो, कुछ ऐसा कि उसे मंच पर साकार किया जा सके'। प्रस्तुति देखते हुए ऐसा लगता है कि अपने मंतव्य को आ