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मुसलमान माँ

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  नि चले हिमालय में उत्तर भारत की खास आरामगाहें मसूरी और लैंडोर शिमला के मुकाबले कहीं ज्यादा खूबसूरत हैं। यहाँ से दिखने वाला देहरादून सिंप्लान की चढ़ाई से दिखने वाले इटली के मैदानी इलाके जैसा लगता है—भले ही वो सिंप्लान से ज्यादा बड़ा और विस्तृत है। मसूरी के माल पर शाम की गहमागहमी देखने लायक होती है। कोई घोड़े पर , कोई पहाड़ी टट्टू पर , कोई पैदल , और कुछ लोग पालकी पर। बड़ा ही खुशनुमा मंजर     होता है। हर कोई अपने पड़ोसी को जानता है , और संकरी सड़क से गुजरते हुए लोगबाग बार-बार दुआ-सलाम और चल रही खबरों या स्कैंडल पर चर्चा के लिए रुकते हुए चलते हैं। कभी आप कुर्सी-पालकी में सवार किसी सनाका खाई औरत को   ‘ बेशर्म कहीं के !’   कहकर चीखते सुनेंगे, क्योंकि   कोई प्रेमी जोड़ा सरपट अपने फुर्तीले अरब घोड़ों पर वहाँ से गुजरा होगा। कभी एक घबराई हुई माँ की तेज चीख घाटी में गूँजती हुई आएगी   जिसने अचानक देखा होगा कि उसका बच्चा इस बेपरवाह जोड़े के रास्ते में आ गया है। कभी-कभी हादसे भी होते हैं। कुछ साल पहले एक स्त्री-पुरुष का जोड़ा   ‘ कैमल्स बैक ’   कही जाने वाली जगह के पास इसी तरह सवारी कर रहे थे कि