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जैकुब स्जेला की अमूर्त कहानी

भारत रंग महोत्सव में पिछले साल देखी एक लाजवाब पोलिश प्रस्तुति 'इन द नेम ऑफ जैकुब स्जेला ' की याद आती है।  जैकुब स्जेला  उन्नीसवीं शताब्दी का किसान विद्रोही था, जिसने पड़ोसी देश आस्ट्रिया की मदद से पोलैंड के ताल्लुकेदारों के खिलाफ रक्तरंजित विद्रोह किया था। प्रस्तुति की निर्देशिका मोनिका स्त्र्जेप्का के मुताबिक आज का पोलिश मध्यवर्ग उसी जैकुब स्जेला  का वंशज है। लेकिन जैसा कि शीर्षक से भी जाहिर है, प्रस्तुति का उसके किरदार से कोई लेना-देना नहीं है। यह उसके नाम के बहाने इंप्रेशनिज्म का एक प्रयोग थी। प्रस्तुति में एक अमूर्त सिलसिले में बहुत सी स्थितियां लगातार घट रही हैं। यह एक बर्फीली जगह का दृश्य है। पूरे मंच पर 'बर्फ' फैली हुई है। बिजली या टेलीफोन के खंबे लगे हुए हैं। पीछे की ओर टूटे फर्नीचर वगैरह का कबाड़ पड़ा है। दाहिने सिरे पर एक कमरा है जो नीचे की ओर धंसा हुआ है। पात्र उसमें जाते ही किसी गहरे की ओर फिसलने लगते हैं। मंच के दाहिने हिस्से के फैलाव में पड़ा गाढ़े लाल रंग का परदा है, जो बर्फ की सफेदी में और ज्यादा सुर्ख लगता है। यह घर से ज्यादा घर के पिछवाड