भारंगम में फिल्म वालों के नाटक
‘ बर्फ ’ : सौरभ शुक्ला =============== यह एक तीन पात्रों की अजीबोगरीब कहानी है। कश्मीर गया हुआ एक डॉक्टर किसी गफलत में अपने टैक्सी ड्राइवर के एक बीहड़ एकांत में स्थित गाँव में पहुँचा हुआ है। ड्राइवर का घर इस निर्जन गाँव का अकेला आबाद घर है, जहाँ वह अपनी बीवी के साथ रहता है। पार्श्व में एक विशाल सफेद कपड़े से बर्फीले पहाड़ का मंजर बनाया गया है और आगे की ओर ड्राइवर का दोमंजिला घर भी कहानी के माहौल के लिहाज से काफी ठीकठाक है। इन दोनों के बीच में कुछ मकानों की खिड़कियों में रोशनी दिखती है। सिनेमा की तर्ज के म्यूजिक और कमोबेश साफ-सुथरे चरित्रांकन में लगता है कुछ निकलकर आएगा। लेकिन ऐसा होने के बजाय कहानी एक साथ लोककथा, रहस्यकथा और नीतिकथा होने के घनचक्कर में फँस गई है। डॉक्टर की बीवी कुछ साइको-नुमा है, जो एक गुड्डे को अपना बच्चा समझती है, और रूहों से निर्देश लेती है। ड्राइवर अपनी मोहब्बत में दिन-रात बीवी की गलतफहमी बनाए रखने की जुगत किया करता है। अब डॉक्टर बीमार होने के कारण लगातार सो रहे ‘ बच्चे ’ का इलाज करने के लिए एक तरह से यहाँ बंदी बना लिया गया है। इससे आगे कहानी में जो ह