भारंगम उद्घाटन : एक रिपोर्ट

1 फरवरी को हुए अठारहवें भारत रंग महोत्सव के उद्घाटन कार्यक्रम में अनुपम खेर ने एनएसडी के दिनों को और उन दिनों की गुरबत को नॉस्टैल्जिया की तरह याद किया। उनके बाद बोलने आए नाना पाटेकर ने उन्हें दुरुस्त किया कि गुरबत सिर्फ गुरबत नहीं होती, उसके साथ अपमान भी जुड़ा होता है, और इन दोनों के साथ जीने का भी एक अपना 'मजा' है। उन्होंने महाराष्ट्र में किसानों की बुरी हालात के जिक्र किए और बताया कि उन्होंने एक फाउंडेशन बनाया है जिसने चार महीने में 22 करोड़ रुपए जमा किए हैं जिससे सूखा प्रभावित क्षेत्र में जल संचयन आदि के काम किए जा रहे हैं और उन क्षेत्रों में अब वाटर टैंकर भेजने की जरूरत नहीं पड़ेगी; 115 किलोमीटर के क्षेत्र में ये काम अभी चल रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह सरकार इस बारे में क्या कर रही है या पिछली सरकार ने क्या किया, मैं इसपर कोई टिप्पणी नहीं करता, मेरे लिए महत्त्वपूर्ण यही है कि हम क्या कर सकते हैं।
ठसाठस कमानी ऑडिटोरियम के अगले दरवाजे से नाना का प्रवेश होते ही पूरा हॉल तालियों वगैरह से जिस तरह गूँजा वह किंचित अप्रत्याशित था। मानो हर कोई नाना के लिए उस दरवाजे पर निगाह लगाए बैठा हो। जब वे बोलने आए तब भी यही हुआ। नाना ने कहा कि मैंने शुरुआत थिएटर से ही की थी लेकिन इधर पिछले 15 साल से कोई थिएटर नहीं किया। वे हल्का सा रुके, और इस ठहराव में व्यापे सन्नाटे पर उन्होंने कहा कि 'स्क्रिप्ट डायरेक्टर की होती है, पर ये पॉज हमारा-तुम्हारा होता है।' नाना ने अभी विष्णु वामन शिरवाडकर के प्रसिद्ध मराठी नाटक 'नटसम्राट' पर महेश मांजरेकर की फिल्म में काम किया है। उन्होंने कहा कि इस फिल्म ने भीतर का सब कुछ ले लिया, अब फिर से जमा होने में समय लगेगा। ऐसा लगता है कि अब अभिनय सीखना शुरू किया है।
इसके पहले बोलते हुए अनुपम खेर ने कहा कि 456 फिल्मों और 150 नाटकों में काम करने के बाद भी थिएटर में आते हुए वैसी ही घबराहट होती है जैसी कि शुरू में होती थी। उन्होंने इब्राहीम अलकाजी और रीता गांगुली से जुड़े संस्मरण सुनाए। अलकाजी वाला संस्मरण यह था : "रानावि में पढ़ाई के दूसरे वर्ष के दौरान अपना प्रोजेक्ट वक्त पर पूरा न करने वालों के लिए अलकाजी ने विद्यालय से बोरिया-बिस्तर समेट कर चले जाने का आदेश निकाल दिया था। जब एक-एक छात्र से पूछा गया तो सब एक रौ में जवाब दे रहे थे 'आई हैव डन सर' ; अनुपम खेर ने उसी रौ में जवाब दिया 'आई विल डू सर'। बाद में उन्होंने रात भर जागकर वह प्रोजेक्ट पूरा किया। अरसे बाद एक बार जब वे पहलगाम में थे तो संयोग से अलकाजी भी वहाँ गए हुए थे। वे उनसे मिलने गए और उनसे खुद द्वारा की गई उस हरकत के बारे में बताना चाहा तो अलकाजी ने कहा- कौन सी हरकत...'आई विल डू सर' वाली।" बोलने के लिए जाते हुए अनुपम खेर ने नाना पाटेकर के पास झुककर उन्हें प्रणाम किया। उन्होंने बताया कि यह प्रणाम कोई मजाक नहीं था, बल्कि हाल में देखी नाना की फिल्म 'नटसम्राट' से पैदा हुई अनुभूतियों के कारण था।
इससे पहले रानावि निदेशक वामन केंद्रे ने भारंगम की महत्ता, इस बार आई पौने पाँच सौ प्रविष्टियों और चुने गए 80 नाटकों की संख्या आदि के बारे में बताते हुए राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के लिए मंजूर की गई योजनाओं और भावी कार्यक्रमों के बारे में भी बताया। ये हैं- 1. आर्टिस्ट इन रेजीडेंस (किसी महत्त्वपूर्ण कलाकार को छह महीने के लिए एनएसडी में रहने की सुविधा के साथ बुलाना।); 2. अलकाजी चेयर; 3. रानावि के लिए एक नई इमारत के लिए धन की मंजूरी; 4. थिएटर ओलंपिक (सन 2018 में प्रस्तावित इस आयोजन में दुनियाभर के नाटक एक साथ कई शहरों में आयोजित किए जाएँगे। संभवतः यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रंगमंच का सबसे बड़ा आयोजन साबित हो।)। बाद में अपने वक्तव्य के दौरान नाना ने वामन से कहा-- 'इतना सब तू कैसे सँभालता है वामन!'
फ्लाइट में देर होने से संस्कृति मंत्री महेश शर्मा तो कार्यक्रम में नहीं आ पाए, पर संस्कृति सचिव एनके सिन्हा ने काफी साफ-सुथरी हिंदी में बताया कि रानावि इमारत के लिए 180 करोड़ रुपए मंजूर किए जा चुके हैं। उन्होंने एक ऐसा प्रेक्षागृह बनाए जाने की भी तस्दीक की जो 'स्टेट ऑफ द आर्ट' (नवीनतम तकनीक युक्त) हो और जिसमें ढाई-तीन हजार लोग बैठ सकें। उन्होंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की शिक्षण विधि की तारीफ की और कहा कि जब विद्यालय के पास जगह है तो उसे टैम्प्रेरी स्ट्रक्चर में क्यों चलना चाहिए!
अंत में रानावि अध्यक्ष रतन थियम ने अंग्रेजी में अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि सभी भाषाएँ बराबर के सम्मान की हकदार हैं, और यह कि थिएटर पर भूमंडलीकरण के प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता।
भारंगम के उदघाटन का यह कार्यक्रम हर साल होता है। एक तो हर साल होने की एकरसता, ऊपर से पिछले सालों के दौरान हावी रहे अंग्रेजी, अभिजात्य और औपचारिकता ने मिलकर इसे एक प्लास्टिक-आयोजन जैसा बना दिया था। इस बार यह यह एक देसीपन की रंगत लिए था। कार्यक्रम के अगले सत्र में रतन थियम निर्देशित प्रस्तुति 'मैकबेथ' का मंचन किया गया।

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