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युद्ध के विरोध में ब्रह्मचर्य

वरिष्ठ नाट्य निर्देशक वामन केंद्रे लिखित और निर्देशित प्रस्तुति ‘ नो सेक्स प्लीज ’ एक काल्पनिक कथावस्तु पर आधारित प्रहसन है। एक राजा है जो युद्ध का प्रणेता है। दर्शक शुरू के दृश्यों में उसके द्वारा लड़े गए युद्धों पर उसका हास्यजनक संभाषण सुनते हैं, जिसमें वह हर चौराहे पर युद्ध देवता के पुतले खड़े कर देने का आह्वान करता है और अपने सैनिकों से कहता है- घाव तुम झेलोगे, वेदना हम झेलेंगे ; खून तुम्हारा निकलेगा, आँसू हमारे। लेकिन चूँकि युद्ध हमेशा ही विभीषिका को जन्म देता है, जिसकी शिकार बनती हैं स्त्रियाँ. नगर की स्त्रियाँ तय करती हैं कि अब वे ऐसा नहीं होने देंगी ; और संगठित गृहणियाँ और गणिकाएँ मिलकर पुरुषों से कह देती हैं- नो सेक्स प्लीज। नाटक का कथासूत्र एरिस्टोफेनस के लिखे एक प्राचीन ग्रीक प्रहसन से लिया गया है ; ऐसा छोटा  प्रहसन जिसे प्रसिद्ध ग्रीक त्रासदियों के मध्य कॉमिक रिलीफ के तौर पर पेश किया जाता था। इसे पूरी लंबाई के नाटक में तब्दील करते हुए वामन केंद्रे ने दृश्यात्मकता के एक पारंपरिक मुहावरे में आबद्ध किया है. उनके पात्र मंच पर चटक रंग वाले कास्ट्यूम में नजर आते हैं।

कुछ पुराने अनुवाद

मैं भी जिन दि नों... कुल्यीन कुल्यीयेव मैं भी जिन दिनों मेरी कच्ची उम्र थी बेफिक्र गीत गुनगुनाता था बेपरवाह- ‘ अंतहीन खुशियों से भरी है ये जिंदगी नहीं वजह खेद करें और भरें आह ’ यूँ ही ताकता था नीले आसमाँ का नूर झरनों का पानी पिया मैंने कई बार पपड़ाई रोटी मेरे स्वाद से थी दूर ताजा रोटी के लिए नहीं था आभार अब तो मेरे भीतर भी आ गई है समझ-बूझ छूट चुके रास्तों पर लौटता हूँ बार-बार अरे कैसी हो सुबह, लेता हूँ रोज पूछ ओ झरने के निर्मल जल, तुम्हें मेरा नमस्कार आकाश, हरे खेत और पैड़ी शुभकामना सुप्रभात, ओ खरीदी हुई हमारी पावरोटी जानता हूँ कभी-कभी है ये संभावना हो सकती हो तुम दुर्लभ और बहुत सूखी भी मैंने समझ-बूझ पाई जीकर ये लंबा जीवन गरिमा से फिर कहता हूँ शुभकामना मेरे विवेक की जगह लेगा जिनका यौवन उन नौजवानों को जो छुएँगे आसमाँ रसूल हमजातोव 1 गाँव के एक आदमी की बीवी के आबनूसी बाल थे दोनों थे बीस के कि बिछड़ गए उनकी खुशियों में आए युद्ध के ये साल थे एक नायक की पके हुए बालों वाली विधवा बैठी हुई रोती है सोचती-सिसकती