पति, पत्नी और साजिश
मंच पर जवानी पार चुका एक बंदा अपनी जवान बीवी के साथ मौजूद है। दोनों सोफे पर बैठे ड्रिंक ले रहे हैं और पास में ही ‘ बार ’ सजी है। दोनों रह-रह कर एक-दूसरे की बाबत अपनी मोहब्बत की ताईद कर रहे हैं। मतलब साफ है कि रिश्ते के भीतर कहीं कोई लोचा है। पति को चौथा पेग गले से नीचे उतारने में दिक्कत आ रही है, यानी सेहत ठीक नहीं रहती। इसी दरम्यान बीवी का मोबाइल बजता है जिसपर उसका होनहार प्रेमी संवाद बोलता है- ‘ चिड़िया घर से निकल चुकी है, जल्द ही पहुँचने वाली है। ’ इस तरह एक सस्पेंस नाटक में शुरू होता है। बंगाल के राजनेता-रंगकर्मी बृत्य बसु के नाटक ‘ चतुष्कोण ’ का यह सस्पेंस मुकाम तक पहुँचने से पहले कई उतार-चढावों से होकर गुजरता है। नाटक में कुल तीन पात्र हैं और कुछ गफलतें। इनमें सबसे दिलचस्प गफलत तीसरे पात्र की है, जो खुद को इंटेलिजेंट और कलाकार समझता है ; लिहाजा उसे हमेशा धंधे और पैसे की बात करने वाले नायिका के पति से नफरत हो गई है। वह उन इकहरी शख्सियत वाले लोगों का नुमाइंदा है जो किसी जुमले के स्टीरियोटाइप में अपने लिए विचार खोज लेते हैं। अपनी खोखली नफरत के बूते वह हत्या करने जा रहा है। न