सम्राट अशोक की विडंबना
दयाप्रकाश सिन्हा का नया नाटक ‘ सम्राट अशोक ’ अपने प्रोटागोनिस्ट को एक नई छवि में पेश करता है. यह एक सत्तालोलुप अशोक है, जो अपने मंत्री की मदद से बड़े भाई का हक हथियाता है. वह कामुक है, कुरूप है और एक उपेक्षित संतान भी. उसके चेहरे पर उसे असुंदर बनाने वाला एक काला धब्बा है, जिसकी वजह से पिता बिंदुसार उसे पसंद नहीं करता. कालांतर में पिता की उपेक्षा अशोक की मनोग्रंथि बन चुकी है, जिससे उबरने के लिए उसने अपना नाम प्रियदर्शी रखा. पर उसकी ग्रंथियाँ इससे कम न हुईं और वह क्रमशः अपने ही अंतर्विरोधों में घिरा एक किरदार बनता गया. वह भिक्खु समुद्र को आग पर जलाकर मार देने का आदेश देता है, क्योंकि भिक्खु ने भाई के रक्त में सने उसके अशुद्ध हाथों से भिक्षा ग्रहण करने से इनकार कर दिया था. फिर अपने अपराधबोधों से बाहर आने के लिए वह बुद्ध की शरण में जाता है, पर यहाँ भी वह एक अतिवादी साबित होता है. सारी जनता और सभी धर्मों के प्रति समान रूप से अपने शासकीय कर्तव्यों को पूरा करने के बजाय उसकी निष्ठा सिर्फ एक ही धर्म के प्रति है. बौद्ध मठों के लिए राजकोष खुले हैं, पर जैन, आजीवक, वैदिक धर्मों आदि की उसे कोई प