सोवियत संघ क्यों ढहा
1990 के आसपास सोवियत संघ और उससे जुड़े देशों में कम्युनिस्ट व्यवस्थाओं के एकाएक ढह जाने का सबसे प्रकट कारण वहाँ की अर्थव्यवस्थाओं का जड़ हो जाना था। इस स्थिति को मार्क्सवादी सिद्धांत, जो निजी लाभ की प्रेरणा को सामूहिक हित के लक्ष्य में रूपांतरित करता है , की विफलता के तौर पर भी देखा गया। कम्युनिज्म को एक कृत्रिम व्यवस्था और निजी लाभ को एक नैसर्गिक प्रवृत्ति मानने वालों के लिए यह समूचा विघटन एक स्वाभाविक चीज था, जिसे देर-सबेर घटित होना ही था। लेकिन इस निष्कर्ष की कुछ खामियाँ हैं। पहली मुश्किल ये खड़ी होती है कि फिर हम रूस में करीब 73 साल तक चले समाजवादी प्रयोग और उसकी उपलब्धियों को कैसे देखें ! बहुत से कम्युनिज्म विरोधी इन्हें तानाशाह व्यवस्था की डंडे के जोर पर अर्जित उपलब्धियाँ मानते रहे हैं, पर सच्चाई की कसौटी पर यह एक खामखाँह किस्म की बात ही है। पहले विश्वयुद्ध के बाद खस्ताहाल एक देश पहले तो एक नई व्यवस्था में खुद को खड़ा करे, फिर खुद पर थोपे गए दूसरे विश्वयुद्ध का विजेता बन जाए, और तत्पश्चात शुरू हुए शीत युद्ध में अन्वेषण के कई मोर्चों पर अमेरिका को मात दे सके, आदि उपलब्धियों क