कोई बात चले उर्फ मोहब्बत की वर्तनी
रामजी बाली लिखित, निर्देशित, अभिनीत प्रस्तुति ‘कोई बात चले’ को देखते हुए विजय
तेंदुलकर के नाटक ‘पंछी ऐसे आते हैं’ की याद आती है। पर यह एक लाइट कॉमेडी है। इसका
नायक कन्हाईलाल बंसीप्रसाद 35 साल की उम्र में एक बीवी की तलाश में है। उसकी
शर्तें बहुत मामूली हैं, जो जल्दी-जल्दी बदलती रहती हैं। कभी उसे गाल पर तिल वाली
लड़की चाहिए, फिर वह इसमें ‘आँखों में चमक’ की शर्त जोड़ देता है। मैरिज ब्यूरो का
पंजाबी लहजे वाला प्यारेलाल शर्मा शरीफ आदमी है जो उसकी हर डिमांड के मुताबिक
लड़कियाँ ढूँढ़ निकालता है। इनसे मिलने की जगह कभी तीस हजारी मेट्रो स्टेशन के
नीचे फिक्स होती है कभी किसी रेस्त्राँ में। रेस्त्राँ में ड्रिंक ले रही लड़की
अपना नाम ‘प्रियांका’ बताती है और नायक
को भूल में बार-बार बंसीप्रसाद के बजाय मुरलीप्रसाद बुलाती है; और उनकी विवाह
संबंधी चर्चा नामों की वर्तनी और व्याकरण में ही उलझकर दम तोड़ देती है।
नायक की दिक्कत है कि वो काफी देसी इंसान है। पसंद की लड़की से मोहब्बत
के इजहार में उसके तोते उड़े रहते हैं। अपने देसीपन में जब वह खालिस हिंदीनिष्ठ
संवाद बोलता है तो एक अच्छी नाटकीयता बनती है। लेकिन अच्छी बात यह है कि वह कोई
वैसा गँवारू देसी नहीं है जैसे सायास किरदार आजकल कॉमेडी के मकसद से काफी रचे जाते
हैं। इस किरदार की अपनी पसंद-नापसंद काफी स्पष्ट है। प्रस्तुति देखते हुए मालूम
देता है कि अभिनेता यशपाल शर्मा से ज्यादा फिट इस रोल के लिए कोई नहीं हो सकता। मात्र
चेहरे-मोहरे में ही नहीं, अपने कुल व्यक्तित्व में भी। मैं उनसे एक-दो मौकों पर
मिला हूँ। हर बार वे इतने ओरिजिनल व्यक्ति मालूम दिए कि लगा किसी भी तरह की
ढोंगपूर्ण स्थिति उनके लिए मुसीबत खड़ी कर देती होगी। बहरहाल इन्हीं सब हालात के
बीच नाटक में सिचुएशन के मुताबिक ‘ओ मेरी हंसिनी’, ‘भीगी-भीगी रातों में’ और ‘किसी शायर की
गजल...ड्रीम गर्ल’ वगैरह गाने भी सुनाई देते हैं और एक प्रवाह बना रहता है।
लेखक के तौर पर रामजी बाली ने भाषा की लच्छेदारी में अच्छी महारत
हासिल कर ली है; और खास बात यह कि ऐसा करते हुए वे जुमलेबाजी में प्रायः नहीं फँसे
हैं। पिछले सालों के दौरान उन्होंने कुछ साहित्यिक शख्सियतों पर भी नाटक तैयार किए
हैं, जिनमें वे कई बार ‘पाठ की भाषा’ के चंगुल में फँसे दिखाई दिए थे। साहित्यिकता की
वैसी त्रुटि से यह प्रस्तुति प्रायः बरी है। अलबत्ता मंच पर खुद प्यारेलाल शर्मा
की भूमिका में वे पूरा खुल नहीं पाए हैं। वे थोड़ा मुखर होते तो यह किरदार कुछ
ज्यादा दिलचस्प हो सकता था। वरना वेशभूषा और पंजाबी लहजे में यह एक ठीकठाक रोचक
किरदार है। इनके अलावा एक-दूसरे से पूरी तरह जुदा स्त्री भूमिकाओं में ऋतु शर्मा भी
प्रस्तुति में अच्छी एनर्जी के साथ थीं।
यह प्रस्तुति करीब साल भर पहले भी एक बार देखी थी। लेकिन
इस बार यह ज्यादा बाँधने वाली लगी।
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