कुछ पुराने अनुवाद
मैं भी जिन दिनों...
कुल्यीन कुल्यीयेव
मैं भी जिन दिनों मेरी
कच्ची उम्र थी
बेफिक्र गीत गुनगुनाता था
बेपरवाह-
‘अंतहीन खुशियों से भरी है ये जिंदगी
नहीं वजह खेद करें और भरें
आह’
यूँ ही ताकता था नीले आसमाँ
का नूर
झरनों का पानी पिया मैंने
कई बार
पपड़ाई रोटी मेरे स्वाद से
थी दूर
ताजा रोटी के लिए नहीं था
आभार
अब तो मेरे भीतर भी आ गई है
समझ-बूझ
छूट चुके रास्तों पर लौटता
हूँ बार-बार
अरे कैसी हो सुबह, लेता हूँ
रोज पूछ
ओ झरने के निर्मल जल,
तुम्हें मेरा नमस्कार
आकाश, हरे खेत और पैड़ी
शुभकामना
सुप्रभात, ओ खरीदी हुई
हमारी पावरोटी
जानता हूँ कभी-कभी है ये
संभावना
हो सकती हो तुम दुर्लभ और
बहुत सूखी भी
मैंने समझ-बूझ पाई जीकर ये
लंबा जीवन
गरिमा से फिर कहता हूँ
शुभकामना
मेरे विवेक की जगह लेगा
जिनका यौवन
उन नौजवानों को जो छुएँगे
आसमाँ
रसूल हमजातोव
1
गाँव के एक आदमी की बीवी के
आबनूसी बाल थे
दोनों थे बीस के कि बिछड़
गए
उनकी खुशियों में आए युद्ध
के ये साल थे
एक नायक की पके हुए बालों
वाली विधवा
बैठी हुई रोती है
सोचती-सिसकती
आज उसका बेटा हुआ है इतना
बड़ा
नहीं उसका बाप था जितना कभी
भी
2
क्या फायदा उस हीरे या सोने
का
जिसे रखा गया हो मिट्टी में
गाड़
या उन चमकते सितारों के
होने का
जिनके आगे आ गई हो बादलों
की आड़
दोस्त मैं बात को कहूँगा
तनिक मुख्तसर
है ये मेरे लिए बिल्कुल
सीधी और स्पष्ट
नहीं जिंदगी के कोई मायने,
अगर
ठुकराते हो तुम किसी दूसरे
के कष्ट
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति . .आभार . मुलायम मन की पीड़ा साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
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