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आधुनिक थिएटर के विकास में महिलाओं का योगदान

भारत में आधुनिक रंगमंच के विकास में महिलाओं के योगदान की बात करने से पहले भारतीय आधुनिकता पर थोड़ी रोशनी डाल लेना उचित होगा। हम सब जानते हैं कि भारत की मौजूदा आधुनिकता उन्नीसवीं सदी के भारतीय पुनर्जागरण के जरिए अस्तित्व में आई। ब्रिटिश राज में शिक्षा, प्रशासन और न्याय की नई प्रणालियाँ लागू होने से पढ़े-लिखे तबके में आम नागरिक के अधिकार की बहस पैदा हुई। स्त्रियों के अधिकार की बात भी इसमें शामिल थी। महिलाओं से जुड़े प्रश्न उस दौर के सामाजिक नाटकों में उठाए जाने लगे थे। लेकिन यह उतना आसान नहीं था। एक तबका अगर उनके अधिकारों का समर्थक था वहीं उनके विरोधी भी भरपूर मात्रा में थे। औरतों के हक की बात को भारतीयों ने शुरुआती दौर में किस रूप में लिया, इसका पता सैयद अहमद की किताब ‘असबाब-ए-बगावते हिंद’ से चलता है। सैयद अहमद ने इस पुस्तक में सन 1857 के विद्रोह के कारणों की पड़ताल की है कि यह बगावत क्यों हुई! वे लिखते हैं- “फौजदारी अदालतों में महिलाओं के स्वतंत्र अधिकारों को मान्यता देने वाला कानून लागू होने से भारतीय लोगों की इज्जत और गरिमा को गंभीर चोट पहुँची। क्योंकि ये उनके रीति-रिवाजों के खिलाफ