दो कविताएँ
सच
की खोज
कवि अतीत को पढ़ते
हैं
प्रेमपत्र की तरह
धीरे-धीरे और कई बार
क्रांतिकारी भविष्य
को
युवा पढ़ते हैं
कामसंबंधों की बातें किताबों में
फाइलों के ब्योरे
दफ्तर के बाबू पढ़ते हैं
पुजारी धर्मग्रंथों
को पढ़कर चुनींदा उद्धरण निकालते हैं
बनिये बही को
इतिहासकार शिलालेखों
को
सच की खोज में लगे
हैं दुनिया के सारे अध्येता
कामना करो वे सफल
हों.
इंतजार
के दिन
इंतजार के दिन एक
भूरा बादल तैरता रहा देर तक आकाश में
एक चिट्ठी आई किसी
के पास
इंतजार के दिन
लड़कियों ने अपनी
भवें सँवारीं
एक बूढ़ा निकलकर आया
सड़क पर
चिल्लाकर सोचा उसने
मृत्यु
यह सब कुछ घटित हुआ
इंतजार के दिन
ऑक्सीजन की जगह
बुढ़ापा
उसकी मजबूत देह में
भर गया
समय का संस्कार मिट
गया था इंतजार के दिन
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