चार नाट्य प्रस्तुतियाँ

बॉस जो प्यादा है 

राजेश बब्बर निर्देशित प्रस्तुति ‘प्यादा’ एलटीजी में देखी। इसका मुख्य पात्र ‘आधे अधूरे’ के महेन्द्रनाथ से मिलता-जुलता है। उसमें आत्मविश्वास की कमी है और वह अपनी बात ठीक से कह नहीं पाता। लेकिन उसकी बीवी सावित्री से मिलती-जुलती नहीं है। यह अपने पति के दोस्त के साथ फ्लर्ट और हमबिस्तरी के रिलेशन में है। दूसरी अहम बात यह है कि ये कोई निम्म मध्यवर्गीय नहीं बल्कि उच्च वर्गीय पात्र हैं। पति एक कंपनी का बॉस है और बहुत से लोगों को नौकरी पर रखने और निकालने की हस्ती रखता है। लेकिन उसकी बीवी का अवैध रिलेशन उसकी दुनियावी हस्ती को धूल में मिला रहा है। अपमान और कुंठा से जूझता पति इससे उबरने की जो सूरतें निकालता है वे थोड़ी अटपटी हैं। जो भी हो, उसका फ्रस्ट्रेशन प्रस्तुति में बहुत अच्छी तरह सामने आया है। जिस क्रम में कुछ ऐसी उप-स्थितियाँ भी नत्थी कर दी गई हैं जिनमें एक तनावपूर्ण मेलोड्रामा है और जिस वजह से प्रस्तुति आखिर तक बाँधे रखती है। नौकरानी के पति का बखेड़ा और ऑफिस के कर्मचारी शर्मा के अन्यत्र संबंध के ये प्रसंग प्रस्तुति में डिजाइनर क्षेपक की तरह हैं। नाटक के लेखक जितेन्द्र मित्तल हैं। मुख्य भूमिका में सुधीर गुलियानी ने किरदार के तनाव, उसकी ऊहापोह और उसकी कुंठाओं को अच्छे से अंजाम दिया है और कई लाउड स्थितियों को भी ठीक से सँभाला है। अन्य भूमिकाओं में शालू सिंह उर्फ गुरमीत कौर और गिरीश चावला भी ठीकठाक संतुलित हैं।

अटलबिहारी वाजपेयी का आत्मवृत्त 


 विपिन कुमार अभिनीत प्रस्तुति ‘मेरी यात्रा अटल यात्रा’ एक एकल आत्मवृत्त है, जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी अपनी जीवनयात्रा के बारे में बताते हैं। अटलबिहारी वाजपेयी की भाव-भंगिमाएँ उनके जीवनकाल में ही कई मिमिक्री कलाकारों के लिए कंटेंट-मैटीरियल बनी रहीं। ऐसे में प्रस्तुति के मिमिक्री में तब्दील हो जाने के खतरे को लगातार टाले रखते हुए भी विपिन ने इसे सपाट होने से बचाए रखा है। एक राजनेता के जीवन के ब्योरों में रोचकता का स्रोत आखिर क्या हो सकता है? अटलबिहारी वाजपेयी के मामले में वो चीज उनकी कविताएँ हैं। उनकी कविता का छंद और उसकी तत्सम शब्दावली कैसे सटीक वाचिक और जोशीले दैहिक अभिनय में एक दृश्यात्मक शै बन सकती है वो यहाँ देखने लायक है। अपने प्रोटागोनिस्ट की शख्सियत की लय के मूल तत्त्व को विपिन कुमार ने पूरी प्रस्तुति के दौरान कभी भी टूटने नहीं दिया है। एक घंटे की यह प्रस्तुति एक मुकम्मल आत्मकथा के प्राक्कथन जैसी है, जिसके निर्देशक और आलेखकार चंद्रभूषण सिंह हैं।







गिमिक और मर्यादा 


अजय कुमार की यह प्रस्तुति पहली बार अब से करीब 20 साल पहले देखी थी। कुल मिलाकर इसके चार-पाँच शो अब तक देखे हैं। अब इस 580वें शो तक अजय कुमार का आत्मविश्वास इस ऊँचाई पर पहुँच चुका है कि बार-बार फ्रेम से बाहर आने के गिमिक में उन्हें आनंद आता है। कभी वे प्रकाश संचालक से ऑडिएंस पर रोशनी डालने को कहते हैं, कभी अपने संगीतकारों से गलत ताल पर दोबारा क्यू लेने को--- और उन्हें याद नहीं रहता कि इससे उनकी प्रस्तुति की रस निष्पत्ति की कितनी ऐसी-तैसी हो रही है। ‘रिजक की मर्यादा’ नामक विजयदान देथा की कहानी पर आधारित कथागायन शैली के स्वआविष्कृत परिमार्जन से युक्त अजय कुमार की यह प्रस्तुति 'बड़ा भाँड़ तो बड़ा भाँड़' अतीत में पर्याप्त प्रशंसा अर्जित कर चुकी है। ऐसे में उन्हें ध्यान दिलाना उचित होगा कि अभिनय और संगीत की तमाम निपुणता अपनी आंतरिक स्फूर्तता का दामन छोड़ते ही सायास होकर असर खो देती हैं।.... ऐसे में दर्शकों की तालियों के झाँसे में नहीं आना चाहिए, क्योंकि इसी सायास मनोवृत्ति का शिकार होने से उन्हें तालियाँ बजाने की लत होती है।





मुकेश झा की प्रस्तुति ‘कम्मल’ 


बारहमासा रंगमंडल की मुकेश झा निर्देशित मैथिलि प्रस्तुति ‘कम्मल’ मुक्तधारा प्रेक्षागृह में देखी। इसमें श्याम दरिहरे की कहानी का एक दुर्द्धर्ष पारंपरिक यथार्थ है, जिसमें कमीना बाप पूरे घरभर पर जुल्म कर रहा है। उसकी बीवी घर का खर्चा चलाने के लिए चरखे पर सूत कातकर खादी भंडार को बेचती है पर यह वो पैसे अपने मौज-मजे में उड़ा देता है और बीवी-बेटी को बुरी तरह पीटता है। उसके मौज-मजे का ठीहा गांव की एक दुकान है, जिसपर कुरकुरे के पैकेट वगैरह लटके हुए हैं और एक निठल्ला आदमी पहले से ही वहाँ बैठा अखबार पढ़ रहा होता है। प्रस्तुति का बाप धूर्त होने के साथ बदमिजाज भी है, लेकिन लड़ाई होने पर दुकानदार भी उसकी ही टक्कर का निकलता है। 

 मुकेश झा ने कहानी की स्थितियों को प्रस्तुति के कपड़े कुछ इस तरह पहनाए हैं कि एक इंगेजमेंट लगातार बनी रहती है। अभिनय प्रायः सभी पात्रों का बेजोड़ है। या कहना चाहिए ऐसी कहानी में चरित्रों की प्रत्यक्षता से अभिनय का जो स्कोप मुहैया होता है उसे सभी अभिनेताओं ने पूरी तबीयत से अंजाम दिया है। यहाँ तक कि घर की छोटी बेटी उस लड़की ने भी जो आखिर में बाप के खिलाफ झाड़ू उठा लेती है। मायानंद झा, शिवानी झा, संतोष कुमार, पूनम सिंह, मनीषा मिश्रा व अन्य सभी अभिनेताओं को इसके लिए बधाई!

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