अतुल कुमार की प्रस्तुति 'गोदे, गोदो, गोदिन'
पाँच पात्रों का नाटक है ‘वेटिंग फॉर गोदो’। इसमें एनएसडी द्वितीय वर्ष के पूरे बैच को खपाने के लिए निर्देशक अतुल कुमार ने नौ शोरूम नुमा कमरों का एक कॉम्प्लेक्स खड़ा करवा दिया। इन कमरों में अलग-अलग डीडी और गोगो हैं। हैट लगाए डीडी और गोगो का प्रारूप दुनिया भर की प्रस्तुतियों में लगभग तय सा है। यहाँ इसी प्रारूप के भीतर कई तरह की रंगतें पैदा की गई हैं। कोई चेहरे पर रंग पोते है, किसी की पतलून नीचे खिसक जाती है, किसी का कोट ज्यादा फटीचर है, वगैरह। किसी सीढ़ी से होते हुए, कोई दरवाजा खोलकर ये स्लो मोशन में मंच पर नमूदार होते हैं। अक्सर इनका बर्ताव किसी कार्टून करेक्टर का सा है, जो नाटक के आखिरी हिस्से में बाकायदा ऐसा ही है। इस पूरे सेटअप में मूल नाटक कितना है यह तो अलग मुद्दा है, लेकिन लाइट्स और टाइमिंग की सटीकता कैसे खुद में एक खालिस दृश्य रचती है यह देखने लायक है। इस क्रम में पहले तो रोशनी किसी एक कमरे में केंद्रित होती है, फिर वहाँ के डीडी-गोगो की अधूरी बात में ही ऑफ होकर किसी दूसरे कमरे में ऑन होती है, और बाकी संवाद हम वहाँ मौजूद दूसरे डीडी और गोगो से सुनते हैं।
चमकदार दृश्य कौंध की तरह होते हैं। लेकिन वे देर तक प्रस्तुति को टिकाए नहीं रख सकते। इसलिए प्रस्तुति का सबसे रोचक हिस्सा वही है जिसमें नाटक को यथावत प्रस्तुत किया गया है, यानी पोज़ो की मौजूदगी वाला प्रसंग। मुझे नहीं लगता कि नाटक के इतिहास में इतना नाटकीय, इतना अर्थगर्भित और इतना दिलचस्प कोई दूसरा दृश्य लिखा गया है। इसकी अत्युक्ति में औपचारिकता एक प्रहसन की सी शक्ल में पेश आती है। लकी का किरदार इंसानी जैविकता की एक लाजवाब व्यंजना है, जिसके बरक्स शोषण, आत्मसम्मान, बौद्धिकता जैसी बातें अपने एब्सर्ड में मखौल जैसी बन जाती हैं।
सामान्य रूप से देखें तो दोनों मुख्य पात्रों को कार्टून करेक्टर की तरह बरता जाना विषय के मूड के लिहाज से ठीक नहीं है। लेकिन चूँकि यह प्रस्तुति ‘वेटिंग फॉर गोदो’ नहीं, बल्कि ‘उसपर आधारित’ है, इसलिए इससे वैसी उम्मीद करना उचित नहीं। यानी इसमें नाटक के कंटेंट के बहाने से एक क्राफ्ट रचा गया है। हालाँकि उस लिहाज से भी नौ कमरों में मौजूद पात्रों पर नजर टिकाना भी दर्शकों के लिए ठीकठाक कवायद बन जाती है। इसका अनुवाद भी कृष्ण बलदेव वैद वाला नहीं बल्कि रजत कपूर का है।
पुनश्च- सैमुएल बैकेट ने हिंदी कवि कैलाश वाजपेयी को दिए एक इंटरव्यू में एक वाकये का जिक्र किया था। एक बार वे कहीं सड़क पर जा रहे थे, तभी सामने से आ रहे एक व्यक्ति ने उनपर चाकू से हमला कर दिया। गुजर रहे लोगों ने उन्हें बचाया और हमलावर को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। अस्पताल से ठीक होने के बाद बैकेट जेल में उस व्यक्ति से मिलने गए। उन्होंने उससे कहा- मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं, पर मुझे सिर्फ इतना बता दो तुमने मुझपर हमला क्यों किया! उसने कहा- क्या बताऊँ, मुझे पता होता तो आपको जरूर बताता।
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