इतिहास की गलतफहमियाँ
हिंदूवादी उभार के बाद से कुछ गलतफहमियाँ जो आम धारणा की तरह दिखाई दे रही हैं उनमें से एक यह है कि अब तक अंग्रेजों और मुस्लिम शासकों ने अपनी तरह से गलत इतिहास लिखवाया जो अब नहीं चलेगा। जबकि सच्चाई यह है कि भारत का ज्यादातर प्रामाणिक इतिहास मुस्लिम शासन और अंग्रेजी राज के दौरान ही लिखा गया। हिंदुओं में चूँकि जीवन और काल की अवधारणा ही बिल्कुल भिन्न थी इसलिए उनके यहाँ इतिहास लिखे जाने का चलन नहीं था। अल बिरूनी ने सन 1030 के आसपास लिखी अपनी किताब ‘तारीख-उल-हिंद’ में हिंदुओं में अपनी विरासत के प्रति लापरवाही, गद्य के प्रति अरुचि और छंद के लिए दीवानगी का जिक्र किया है। उसके कहे का उदाहरण बाद में ‘पृथ्वीराज रासो’ जैसी रचना में देखने को मिलता है जो हिंदुओं के आहत अहं के लिए भले ही उपयोगी हो, पर उसमें वर्णित ब्योरों का इतिहास के अन्यत्र उपलब्ध तथ्यों से कोई तालमेल नहीं है। इसके उलट मुसलमानों में अपने वक्त के ब्योरे दर्ज करने का चलन हमेशा से था। उन्हें झूठ लिखने की भी कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि काफिरों की हत्याएँ और मंदिर विध्वंस उनके लिए एक पवित्र काम था। इसीलिए मुसलमान इतिहासकारों ने इस्लामी राज्य फैलाने के क्रम में की गई उन लाखों हत्याओं के बारे में काफी गौरव के साथ लिखा है। उदाहरण के लिए अमीर खुसरो की ‘तारीख-ए-अलाई’ से ये हिस्से देखे जा सकते हैं :
मालाबार फतह : अग्निपूजक राय को जब पता चला कि उसके मंदिर को मस्जिद में बदल दिया जाएगा तो उसने किसु मल को भेजा कि वह मुसलमानों के हालात और ताकत का पता लगाकर आए, और वह इतने खतरनाक ब्योरों के साथ लौटा कि अगली सुबह ही राय ने बालकदेव नायक को शाही छतरी पर यह कहने के लिए भेजा कि ‘आपका सेवक बिलाल देव, लद्दर देव और राम देव की तरह महान बादशाह की वफादारी की कसम खाने को तैयार है और वक्त के सुलेमान जैसा आदेश दें मैं उसका पालन करने के लिए तैयार हूँ। यदि आप दैत्याकार घोड़े या आफरीत (प्राचीन मुस्लिम कथाओं का एक ताकतवर दानव) जैसे हाथी या देवगीर जैसी मूल्यवान वस्तुएं जो भी चाहें, हाजिर हैं। यदि आप इस किले की चारों दीवारों को तोड़ना चाहते हैं तो इसमें भी कोई बाधा नहीं है। यह किला बादशाह का किला है, इसे स्वीकार करें।’ फौज के मुखिया (मलिक काफूर) ने जवाब दिया कि मुझे तुम्हें मुसलमान अथवा धिम्मी बनाने और सरकारी टैक्स के अधीन लाने के लिए भेजा गया है, और ऐसा न होने पर कत्ल कर देने के लिए। जवाब सुनकर राय ने कहा कि वह अपने जनेऊ के अलावा अपना सब कुछ देने के लिए तैयार है। (तारीख-ए-अलाई, हिस्ट्री ऑफ इंडिया, एज टोल्ड बाई इट्स ओन हिस्टोरियन्स, पृष्ठ-89)
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यहाँ उस (मलिक काफूर) ने सुना कि ब्रह्मस्थपुरी में एक सोने की मूर्ति थी जिसके चारों ओर बहुतेरे हाथी थे। मलिक इस जगह के लिए रात को ही निकल पड़ा और सुबह उसने कम से कम ढाई सौ हाथी कब्जे में ले लिए। फिर वह उस खूबसूरत मंदिर को धराशायी करने पर आमादा हो गया- “आप इसे ‘शद्दाद की जन्नत’ (कुरान में वर्णित एक शानदार खोया हुआ शहर) कह सकते हैं, जिसे खो जाने के बाद इन नर्कवासियों ने पा लिया और यह राम की सोने की लंका थी”। “इसकी छत पन्नों और माणिक से आच्छादित थी”... “संक्षेप में यह हिंदुओं की पवित्र जगह थी जिसे मलिक ने सावधानीपूर्वक उसकी नींव से ही नेस्तनाबूद करवा दिया” “और ब्राह्मणों और मूर्तिपूजकों के सिर उनके कंधों पर से नाचते हुए उनके पैरों में गिर पड़े, और रक्त की बौछारें फूट पड़ीं।” “पत्थर की मूर्तियाँ जिन्हें लिंग महादेव कहा जाता था जो लंबे समय से यहाँ विराजित थीं और इस्लाम के घोड़े ने जिन्हें अभी तक तोड़ने की कोशिश नहीं की थी” मुसलमानों ने उन सभी को तोड़ दिया।... काफी सोना और कीमती जवाहरात मुसलमानों के हाथ लगे, जो 710 हिजरी की तेरहवीं जि-इल-कादा (अप्रैल, 1311) को अपने इस पवित्र काम को अंजाम देने के बाद शाही शिविर की ओर लौट गए। (तारीख-ए-अलाई, हिस्ट्री ऑफ इंडिया, एज टोल्ड बाई इट्स ओन हिस्टोरियन्स, पृष्ठ-90-91)
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सुल्तान ने जुमादा-ए-अव्वाल, हिजरा 698 की 20 तारीख को उलूग खान को मालाबार और गुजरात की ओर सोमनाथ मंदिर तोड़ने के लिए भेजा। उसने सोमनाथ के सभी मंदिरों और मूर्तियों को नष्ट कर दिया, लेकिन एक मूर्ति जो बाकी सभी मूर्तियों से बड़ी थी, को ईश्वरतुल्य शहंशाह के दरबार में भेज दिया।(वही, पृष्ठ-76)
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चित्तौड़ में 703 हिजरा में मुहर्रम की 11वीं तारीख सोमवार को किला कब्जे में ले लिया गया। तीस हजार हिंदुओं की हत्या का हुक्म देने के बाद उस (अलाउद्दीन खिलजी) ने अपने बेटे खिज्र खान को वहाँ का शासक बना दिया और जगह का नाम खिज्राबाद रख दिया। “....अल्लाह कितना महान है कि उसने काफिरों को सजा देने वाली अपनी तलवार से इस्लाम से बाहर हिंद के सभी राजाओं की हत्या का आदेश दिया। यदि इस वक्त किसी वजह से कोई काफिर अपने हक का दावा करता है तो कोई भी सच्चा सुन्नी अल्लाह के इस खलीफा के नाम की कसम लेकर कह सकता है कि काफिर के कोई हक नहीं होते।” (वही, पृष्ठ-77) (गौर करने की बात है कि इनवर्टेड कॉमा में आखिरी पंक्तियाँ खुद को तूती-ए-हिंद कहने वाले अमीर खुसरो की उद्भावना है, न कि वृत्तांत। उल्लेखनीय है कि इरफान हबीब ने अपने निबंध ‘बिल्डिंग द आइडिया ऑफ इंडिया’ में अमीर खुसरो को हिंदुस्तान का पहला देशभक्त बताया है।)
अंग्रेजों का काम तो इस सिलसिले में और भी महत्त्वपूर्ण है जिन्होंने भारत के इतिहास को क्रमबद्ध और व्यवस्थित किया। एशियाटिक सोसाइटी के वक्त और उसके बाद भी अंग्रेजों की एकत्रित की स्रोत-पुस्तकें और उनके तर्जुमे आज तक काम आ रहे हैं। इसके अलावा यह अंग्रेजी शिक्षा का ही परिणाम था कि ब्रिटिश शासन के दौरान ही खुद भारत में जदुनाथ सरकार, डीआर भंडारकर और आरसी मजूमदार जैसे बड़े इतिहासकार पैदा हुए। कोई सोच सकता है कि अगर अंग्रेजों ने वह काम न किया होता तो आज हमारे पास मुस्लिम दौर की उन सच्चाइयों को जानने का कोई जरिया न होता जिनके बारे में मैक्समूलर ने लिखा था कि ‘जब आप मुस्लिम विजेताओं द्वारा की गई क्रूरताओं के बारे में पढ़ते हो तो...मुझे आश्चर्य होता है कि ऐसे नरक में कैसे कोई देश खुद को बगैर शैतान में तब्दील किए बच सकता है।’
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