बादशाह की उदारता

चंपत बुंदेला के खिलाफ लड़ाई में शाहजहाँ का खानखाना नाम का एक फौजी सरदार मारा गया। लापरवाही में बादशाह ने उसकी जगह कोई दूसरा नियुक्त नहीं किया। उन दिनों दरबार में एक सेनापति था जिसके दादे-पड़दादे तैमूरलंग की लड़ाइयों में लड़े थे। वह एक काबिल आदमी था, और बादशाह उसकी सलाहें लिया करता था। एक रोज वह शाही दरबार में काफी संजीदा और रंजीदा दिखाई दिया। शाहजहाँ ने उससे पूछा कि वह किस वजह से चिंतातुर है। उसने जवाब दिया कि एक साम्राज्य खंबों पर बनाए गए महल के समान होता है। उनमें से एक भी अगर कम हो और कोई उपाय न किया जाए तो यह महल गिर पड़ेगा। और जैसे महल में खंबे वैसे ही बादशाहत के लिए अच्छे अफसर। अगर कम हो गए अफसर की जगह दूसरा नियुक्त न किया गया तो साम्राज्य का गड्ढे में जाना तय है। बादशाह सलाह से खुश हुआ और उसे निर्देश दिया कि वह उस युद्ध में मारे गए अफसर की जगह किसी वाजिब व्यक्ति को उस पद पर भर्ती करे। जल्द ही यह आदेश लागू कर दिया गया।
उस सेनापति का नाम सैयद खान बहादुर था। उसके कोई संतान नहीं थी। बादशाह चाहता था कि उसे संतान हो। उसने अपने हकीम को ‘तैमूरलंग के वृत्तांत’ में उल्लिखित ग्यारह अवयवों का मिश्रण बनाने के लिए कहा। मैंने भी इसे कई बार आजमाया है और हमेशा ही बढ़िया नतीजे पाए हैं। सैयद खान बहादुर ने दवा लील ली, और अगले चार साल खत्म होते-होते उसके अधीनस्थ अनेकानेक बीवियों, रखैलों और दासियों से बहुतेरे लड़के हुए। चार साल बाद शाहजहाँ ने उससे पूछा कि उसके कितने बेटे हैं, तो उसने कहा कि वह कल बताएगा। उसे पता चला कि लड़कियों की गिनती किए बगैर उसे साठ बेटे हैं। उसने आलमपनाह द्वारा उसे दिए गए उपहार पर उनसे आभार जताया, और कहा कि ये सभी बच्चे शाही आदेश पर कुर्बानी के लिए तैयार हैं। बादशाह ने उन्हें खानजाद, यानी दरबार में जन्मे, की उपाधि से विभूषित किया, जिसके जरिए वे ज्यादातर जाने गए, और अच्छा वेतन लेते रहे। (Storia de mogor से अनूदित)

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