दारियो फो : एक खरे मसखरे का जाना
अभी तीन साल पहले जीवन और
रंगमंच में 60 साल तक उनकी सहचर रहीं पत्नी फ्रांका रेमे का निधन हुआ था, और अब इस
13 अक्तूबर को इतालवी नाटककार दारियो फो भी 90 साल की उम्र में दुनिया को विदा कह
गए। फो अपने जीते-जी रंगमंच में प्रतिरोध की बहुत बड़ी आवाज थे। उनके लिखे 80 नाटक
दुनिया की तीस से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद होकर खेले गए, जिनके कारण उन्हें भरपूर
मात्रा में प्रशंसक और दुश्मन दोनों मिले और 1997 में नोबल प्राइज भी।
फो के नाटकों की विशेषता
थी- समकालीन मुद्दों से उनका जुड़ाव, अपने वक्त की तल्खियों पर तीखी
व्यंग्यात्मकता और नाटकीयता का एक ऐसा ढाँचा जिसमें स्थितियाँ अपनी विचित्रताओं
में बहुत तेजी से घटित होती हैं। उनके दो नाटक पूरी दुनिया में (और हिंदी में भी)
सबसे ज्यादा खेले गए—‘एक्सीडेंटल
डेथ ऑफ एन एनार्किस्ट’
और ‘चुकाएँगे नहीं’ (‘can’t pay? won’t pay!’)। इनमें ‘चुकाएँगे नहीं’ महँगाई के विषय पर केंद्रित नाटक है। शहर में बढ़ती
कीमतों के बीच किसी स्टोर पर खाद्य पदार्थों की लूट हो गई है। एंटोनिया भी इस लूट
में सामान ले आई है। अब उसे इस बात को अपने पति से छिपाना है, जो चुराए गए खाने की
तुलना में भूखों मर जाना पसंद करेगा। इसी बीच एक पुलिसवाला लूट की जाँच करते हुए आ
पहुँचा है। तब एंटोनिया की सहेली मार्गरीटा एक गर्भवती के तौर पर सारे सामान को
अपने कपड़ों में छिपा लेती है। अब हड़बड़ी में हुई गलतबयानी से स्थितियाँ और उलझ
गई हैं, और इसी से एक गहरा हास्य पैदा होता है। इसी तरह ‘एक्सीडेंटल डेथ ऑफ एन एनार्किस्ट’ एक सच्चे वाकये पर आधारित नाटक है।
1969 में इटली के मिलान शहर में एक बम ब्लास्ट हुआ था जिसमें 16 लोग मारे गए थे।
ये ब्लास्ट हुआ तो राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण था, पर इसमें गलत ढंग से एक
रेल कर्मचारी को पकड़ लिया गया, जिसकी पूछताछ के दौरान थाने में ही मौत हो गई थी।
इसी घटनाक्रम को आधार बनाकर ये नाटक लिखा गया। नाटक के केंद्र में ऐसा आरोपी है जो
भेस बदलकर तरह-तरह के रूप धरता है। वह पागल है और डॉक्टरों की जाँच में उसका ‘एक्टिंग मैनियाक’ होना पता चला है। वो अब तक बारह
बार तरह-तरह के रूप धर चुका है। आखिरी बार उसने एक मनोचिकित्सक के रूप में एक
लड़के को सीजोफ्रीनिक घोषित किया था और अपनी फीस के रूप में दो सौ पाउंड वसूले थे; यह ऊँची फीस उसके मुताबिक इसलिए
जायज थी कि बगैर इसके लड़के के माँ-बाप ने उसे संजीदगी से न लिया होता। मैनियाक अब
जज बनना चाहता है क्योंकि बाकी सभी पेशों में उम्र बढ़ने के साथ-साथ इंसान की वकत
घटती जाती है पर जज के साथ इसका उलट होता है। और आखिरकार गफलत और हालात की
उलटबाँसी में मैनियाक अपनी ख्वाहिश पूरी कर ही लेता है। वह पुलिस मुख्यालय में जज
के रूप में खुद को पेश करके सब कुछ उलट-पलट कर देता है। नाटक में स्थितियाँ इतनी
तेजी से घटित होती हैं कि उसकी नाटकीयता को संतुलित बनाए रखना ही निर्देशक के लिए
एक चुनौती बन जाती है। फो ने अपने इस नाटक को ‘एक त्रासद प्रहसन के बारे में लिखा गया बेढंगा प्रहसन’ कहा था।
फो
ने न सिर्फ नाटक लिखने में बल्कि उनके मंचन में भी कई तरह के प्रयोग किए। उन्होंने
पार्क में, खंडहर हो गए कारखाने की इमारत में, यूनिवर्सिटी के विरोध प्रदर्शनों
में, चर्चों में, जेलों में हर जगह नाटक किए। मकसद था अधिक से अधिक लोगों तक
पहुँचना। उन्होंने भ्रष्टाचार, गर्भपात, संगठित अपराध तंत्र, सत्ता के तौर तरीकों,
चर्च के रवैये, एड्स की बीमारी, युवाओं में ड्रग्स की बढ़ती लत आदि तमाम विषयों पर
नाटक किए। उन्होंने बात को कहने के नए-नए तरीके खोजे, और किस्सागोई की इतालवी
परंपरा में से बहुत कुछ अपने काम का निकाला। उनकी इस निरंतर सक्रियता ने उन्हें
अपने देश के सबसे लोकप्रिय लोगों में शुमार कर दिया था। नोबल पुरस्कार देने वाली
स्वीडिश अकादेमी ने उनके काम को ‘मध्ययुगीन
विदूषकों की शैली में दबे-कुचलों की गरिमा को आवाज देने वाला’ बताया। नोबल पुरस्कार की घोषणा के वक्त फो रोम से
मिलान की ओर जाने वाली सड़क पर अपनी कार से गुजर रहे थे। वे कार चला रहे थे और
साथ-साथ एक युवा टीवी पत्रकार को इंटरव्यू भी दे रहे थे। तभी एक कार उनकी कार के
बराबर में आई जिसकी खिड़की पर लगे एक बड़े से गत्ते पर लिखा था- ‘दारियो, आपने नोबल प्राइज जीत लिया!’ कुछ देर बाद जब वे मिलान के विआ दि पोर्टा रोमाना
थिएटर के बाहर थे तब उन्हीं के शब्दों में- ‘अचानक मुझे चारों ओर से रिपोर्टरों, फोटोग्राफरों और
कैमरा लिए टीवी कर्मियों ने घेर लिया। वहाँ से गुजर रही एक ट्राम बिल्कुल
अनपेक्षित ढंग से रुक गई। उसका ड्राइवर मुझे बधाई देने के लिए उतर कर आया। फिर सभी
यात्री भी उतर कर आए और उन्होंने मेरा अभिनंदन किया। हर कोई मुझसे हाथ मिलाना और
मुझे बधाई देना चाहता था।’
ऐसा
नहीं था कि फो अपने ये तीखे नाटक सहूलियत से करते रहे, बल्कि उन्हें बार-बार इसकी
कीमत भी चुकानी पड़ी। 1973 में मिलान पुलिस के कुछ उच्चाधिकारियों द्वारा भाड़े के
पाँच फासिस्ट अपराधियों को एक सुपारी दी गई थी। अपराधियों ने फो की पत्नी फ्रांका
रेमे का बंदूक की नोक पर एक वैन में अपहरण किया, उनके साथ रेप किया, उनकी पिटाई
की, उन्हें सिगरेटों से दागा, रेज़र ब्लेड से उनके शरीर पर कट लगाए, और फिर उन्हें
एक पार्क में छोड़ गए। पर इस घटना के महज दो महीने बाद फ्रांका अपने दो नए फासिस्ट
विरोधी एकालापों के साथ पुनः मंच पर प्रस्तुत थीं। दस साल बाद 1983 में ग्रुप के
एक नाटक ‘द ओपन कपल’ में फ्रांका ने ‘द रेप’ शीर्षक अपने एकालाप को नाटक की प्रस्तावना के तौर पर
पढ़ा। जरूर उसमें कुछ ऐसा भीषण था कि प्रशासन को प्रस्तुति में अवयस्कों का प्रवेश
प्रतिबंधित करना पड़ा।
नौवें
दशक के शुरुआती सालों में दारियो फो अमेरिका में सबसे ज्यादा खेले जाने वाले
नाटककार थे, पर अमेरिका में उन्हें प्रवेश की अनुमति नहीं थी। कई फिल्मकारों,
रंगकर्मियों, नाट्य आलोचकों द्वारा गुहार लगाने
के बावजूद उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया। उनके वैचारिक हस्तक्षेपों के अलावा इटली
की कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य होना भी इसका एक कारण था। आखिर 1984 में न्यूयॉर्क
के ब्राडवे में उनकी ‘...डेथ
ऑफ एन एनार्किस्ट’
की प्रस्तुति के प्रीमियर के लिए उन्हें थोड़े समय का वीजा दिया गया। अमेरिकी नीति
को लेकर फो का सबसे उत्तेजक बयान सन 2001 की वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले की
घटना के बाद आया। एक ईमेल में उन्होंने कहा कि न्यूयॉर्क में तो सिर्फ बीस हजार ही
मरे, लेकिन अमेरिका की अधम अर्थव्यवस्था तो हर साल लाखों को गरीबी में धकेलकर मार
डालती है। उन्होंने कहा कि बगैर इस तथ्य में जाए कि इस हत्याकांड को किसने अंजाम
दिया, यह हिंसा हिंसात्मक संस्कृति, भूख और अमानवीय शोषण की वैधानिक बेटी है।
ऐसा
नहीं था कि फो का प्रतिरोध सिर्फ पूँजीवादी देशों के खिलाफ मात्र रहा हो। 1968 में
सोवियत संघ द्वारा चेकोस्लोवाकिया में सेना भेजे जाने के खिलाफ उन्होंने वहाँ अपने
नाटकों के कॉपीराइट वापस लेकर उनके प्रदर्शन को नामंजूर कर दिया था। उनके इस कदम
ने उन्हें तत्कालीन कम्युनिस्ट देशों की आँख की किरकिरी बना दिया था। इसी तरह चीन
में 1989 के थिएनअनमन चौक के जनसंहार के विरोध में उन्होंने दो एकालाप ‘लेटर फ्राम चाइना’ और ‘स्टोरी ऑफ क्यू’ लिखे।
राजनीतिक
प्रसंगों के अलावा फो ने ऐसे विषयों पर भी नाटक किए जिसके कारण उनपर ब्लासफेमी
(ईशनिंदा) के आरोप लगे। 1969 में प्रस्तुत उनके नाटक ‘मिस्टेरो बफो’ अथवा ‘कॉमिकल
मिस्ट्री’ (मज़किया रहस्य) के
टीवी प्रदर्शन को वेटिकन ने ‘टेलीविजन
के इतिहास का सबसे ज्यादा ईशनिंदा करने वाला शो’ करार दिया। यह प्रस्तुति कई एकांकियों की एक
श्रृंखला थी, जिसमें पुराने वक्त में सतत यात्रारत रहने वाले उन सैलानियों की
मार्फत बातें बुनी गई थीं, जिनके कारण गाँव-देहात तक दुनिया भर की खबरें पहुँच
पाती थीं। श्रृंखला की आखिरी प्रस्तुति में ईसा के जीवन और मृत्युदंड को पारंपरिक
नाट्य ‘पैशन प्ले’ के माध्यम से कहा गया। बीसवीं सदी के उत्तरार्ध की
सर्वाधिक विवादास्पद मानी गई यह नाट्य प्रस्तुति वेटिकन द्वारा निंदा के बावजूद
तीस साल तक यूरोप और अमेरिका में खेली जाती रही। 1987 में क्रिसमस से पहले के एक
टीवी शो में फो द्वारा प्रस्तुत ‘फर्स्ट
मिरेकल ऑफ इन्फैंट जीसस’ (‘शिशु
यीशु का पहला चमत्कार’) को भी वेटिकन द्वारा ब्लासफेमी
करार दिया गया। उनके एक अन्य नाटक ‘पोप
एंड द विच’ में एक पोप को दो
समस्याएँ हैं। पहली यह फोबिया कि बच्चे उसपर हमला कर देंगे, और दूसरी उसका गठिया
रोग। कोशिशों के बाद वह इनसे उबर गया है, लेकिन गठिया से उबरने के क्रम में उसके
हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में ऊपर ही अटके रह गए हैं। पोप अपना सारा काम नन का भेस
धरे एक चुड़ैल की सलाह पर करता है। यह चुड़ैल इलाज के लिए हेरोइन के इंजेक्शन लेती
है और खिलौना कार, जहरीले तोते और ब्राजीलियन नन के जानलेवा हमलों से बची रही है।
2001
में लिखे उनके नाटक ‘द
टू हेडेड एनोमली’ (‘दो मस्तिष्कों की अनियमितताएँ’) में चेचेन विद्रोहियों दवारा मार
दिए गए दिखाए गए व्लादिमीर पुतिन का दिमाग तत्कालीन इतालवी प्रधानमंत्री सिल्वियो
बरलुस्कोनी की खोपड़ी में फिट कर दिया जाता है। इस नाटक के लिए फो को मुकदमे का
सामना करना पड़ा और उन्हें धमकियाँ भी मिलीं। युवाओं में नशे की लत पर उनका नाटक ‘मदर्स मारिजुआना इज द बेस्ट’ में घर के दादाजी गलती से नशीले
ड्रग को एस्पिरिन समझकर खा लेते हैं, और भ्रांति में अलमारी को ट्राम समझकर यात्रा
करते रहते हैं।
1973
में चिली के राष्ट्रपति सल्वादोर एलेंदे की सुनियोजित हत्या के बाद फो ने एक नाटक ‘द पीपुल्स वार इन चिली’ तैयार किया, जिसे खूब प्रशंसा
हासिल हुई और इटली के अलग-अलग शहरों में इसके बहुतेरे प्रदर्शन हुए। प्रस्तुति में
स्थितियों को कुछ इस तरह बुना गया कि नाटक के अंत तक पहुँचते-पहुँचते कुछ दर्शकों
को लगा कि सचमुच इटली में तख्तापलट हो गया है। तनाव में एक दर्शक ने भाग निकलने के
लिए एक खिड़की का शीशा तोड़ डाला, और एक अन्य ने अपने पास मौजूद कुछ दस्तावेजों को
इस मौके पर खतरनाक समझकर उसके दस पन्नों को खा डाला।
फो
हमेशा वामपंथी रहे, पर बाद के सालों में वे भूमंडलीकरण विरोध और पर्यावरण के
मुद्दे पर बनी इटली की फाइव स्टार मूवमेंट पार्टी से जुड़ गए थे। वे सोलहवीं सदी
के इतालवी नाटककार रूज़ान्ते और सत्रहवीं सदी के फ्रेंच नाटककार मोलियर को अपना
गुरु मानते थे। ये दोनों उन्हीं की तरह अभिनेता, लेखक और व्यंग्यकार थे। अपने नोबल
पुरस्कार भाषण की शुरुआत ही उन्होंने तेरहवीं सदी के एक इतालवी कानून की याद
दिलाते हुए की थी जिसमें विदूषकों के लिए एक सीमा के बाद मौत की सजा मुकर्रर की गई
थी। उन्होंने मसखरी के जोखिम को जानते हुए मसखरा बनना कुबूल किया था।
शानदार, जानकारीपरक। हिन्दी में विदेशी नाटककारों में से एक और नोबल पुरस्कार से सम्मानित नाटककार के जीवन तथा कृतित्व के विषय में एक नयी खिड़की खोलता है। इस सिलसिले को बनाए रखे।
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