आओ मिलकर झूठ बोलें


दिल्ली में हुई रेप की घटना पर एक बड़े फिल्म स्टार ने, जिसने कभी पूरी दबंगई से कबूल किया था कि हां मैं शादियों में नाचकर पैसा कमाता हूं, भी शोक प्रकट किया। एक मशहूर हो गए शायर-कवि ने, जिसे एक आप्रवासी पूंजीपति की बेटी की शादी का विवाह-गीत लिखकर पैसा कमाने में गुरेज न हुआ, ने भी अपनी सुघड़ राय प्रकट की। देश के गृहमंत्री ने भी बताया कि मैं तीन बेटियों का बाप हूं और बहुत चिंतित हूं। इस तरह इस घटना के बहाने बहुत से लोगों के मानवीय या नागरिक पक्ष सामने आए। मैं उस प्रसिद्ध खिलाड़ी का बयान भी इस बारे में ढूढ़ता रहा, जिसके रिटायर न होने के अद्वितीय लालच में भी एक महानता निहित बताई जा रही है। पर उसका बयान दिखा नहीं। दुख प्रकट करना एक ऐसा काम है जिसमें किसी का कुछ भी घिसता नहीं है। दुख प्रकट करो और इसके बाद आराम से जैसा चाहो वैसा जीवन जियो। सब जानते हैं कि बलात्कार की न यह पहली खबर है न आखिरी। सब जानते हैं कि मंत्रियों और धनी लोगों की बहू-बेटियों से बलात्कार नहीं हुआ करता। इसलिए उनकी दुख की भंगिमा या तो शालीनता हो सकती है या छद्म। किसी चैनल ने गृहमंत्री या प्रधानमंत्री से यह नहीं पूछा कि भाईसाहब बलात्कार की घटनाएं तो रोज ही बहुत सारी हो रही हैं, आप इस घटना पर ही मात्र बयान क्यों दे रहे हैं; कि आपके गृहमंत्रित्व में ऐसी क्या खोट है कि समाज में दुर्दांत बलात्कारियों की तादाद बढ़ती ही जा रही है; कि जरा यह भी बताएं कि इस देश की जनता से हासिल राजस्व में से जितना पैसा आपकी सुरक्षा, वेतन और सुख-सुविधा के लिए खर्च किया जाता है उसके बदले में आप इस देश को क्या दे रहे हैं। लेकिन तीस हजार करोड़ के विज्ञापन राजस्व से चल रही मीडिया इंडस्ट्री का कोई नुमाइंदा इस सवाल को पूछने में वक्त जाया नहीं करता। वजह है कि इससे पूरी घटना का इमोशन संजीदगी की दिशा में चला जाता है। जबकि उसका काम जल्दी-जल्दी इमोशन को बेचना है।  
कहते हैं दूसरों से झूठ बोलने से ज्यादा बुरा है खुद से झूठ बोलना। इससे इंसान का जमीर मर जाता है। मुझसे एक बार विष्णु खरे ने कहा था कि इस देश का जमीर मर चुका है। इस बात को तेरह-चौदह साल हुए। लगता है कि तब से यह देश बगैर जमीर के ही चल रहा है। कल्याण सिंह ने कहा था कि वे राम मंदिर के लिए अपनी जान भी दे देंगे। फिर उनका अपने धुरविरोधी मुलायम सिंह से ही एका और फिर खटपट हो गई। इससे बहुत लोगों को असमंजस हुआ कि राममंदिर सेकुलरिज्म बनाम सांप्रदायिकता का मुद्दा है या जमीर का। 32 रुपए की गरीबी रेखा वाले देश में प्रधानमंत्री साढ़े सात हजार रुपए की थाली वाला भोज देते हैं, फिर भी लोकतंत्र का जमीर सेकुलरिज्म की वजह से सुरक्षित रहता है। याद आता है कि प्राचीन समय के किसी हिस्से में ऐसा माना जाता था कि स्त्रियों के आत्मा नहीं होती। सोचता हूं, जर्जर आत्माओं के साथ जीने की तुलना में बगैर आत्मा के जीना उस शख्स के लिए शायद ज्यादा बेहतर होता होगा। एक ऑटो वाले ने एक बार मुझे उसी प्राचीन समय से आई एक स्त्री की वास्तविक घटना सुनाई थी।  वह लड़की उसके आटो में नेताजी नगर के लिए बैठी थी। अपने गंतव्य पर पहुंचकर उसने आटो वाले से ठहरने को कहा और वह एक घर पर गई। घर पर ताला बंद था। लौटकर उसने आटो वाले से कहा कि उसके पास बिल्कुल पैसे नहीं हैं और आटो के भाड़े के बदले में वह जो चाहे उसके साथ कर सकता है। आटो वाले का कहना था- भाई साहब मैंने उससे कहा कि देख भई, मेरी बीवी सुबह चार रोटी बांध देती है, दोपहर में कहीं छोले कुल्चे के ठेले पर पांच रुपए के छोले लेकर उनसे ही पेट भरता हूं। इस सब गोरखधंधे की मेरी औकात नहीं है, मुझे तो पैसे चाहिए। तब वह लड़की उसे सरोजिनीनगर ले गई, जहां के एक पनवाड़ी से लेकर उसने उसे पैसे दिये।
कुछ मीडिया संस्थानों में बलात्कार शब्द के इस्तेमाल पर पाबंदी रही है। उसकी जगह दुष्कर्म शब्द का इस्तेमाल किया जाता रहा है। लेकिन इधर इस घटना के बाद से छोटी-छोटी बच्चियांवी वांट टु बी सेफ, नॉट बी रेप्ड जैसे नारों की तख्तियां उठाए कैंडिल मार्च में शामिल दिख रही हैं। ऐसी दुर्दांत घटनाओं के बाद यह कौन कहे कि उनकी मासूमियत और जीवन की गरिमा का यह थोड़ा सा और क्षय है।  
लड़कियोयाद रखोगरीब लोग तेजी से साइको बनते जा रहे हैं और अमीर लोग निरंकुश। और समझो कि कानून एक भ्रामक चीज है। ऐसे में किसी पर भरोसा मत करो। हमेशा इतनी चौकन्नी और मुस्तैद रहो कि कवि लोग तुममें कोई मासूमियत ढूंढ़ने को तरस जाएं। सरकार से कोई उम्मीद मत रखोकिसी भी रिश्ते को पवित्र न समझो। संदेह को जीवन का सूत्र बनाओ। इस तरह तुम खुद को बचाओगीपर अपने भीतर क्या बचाओगीलगता है कि एक टूटी-फूटी गरिमा और अविश्वास की पोटली ही तुम्हारा प्राप्य है। आओ इसी पोटली के साथ इस असुरक्षा से भरे  मुल्क में हम खुद के बचे रहने के सुख को महसूस करें। इस खुशी का अहसास करें कि मनुष्यों के इस विशाल जंगल में हम किसी के कष्ट की वजह नहीं बने।

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