इतिहास के खंडहर में तुगलक
फिरोजशाह कोटला के खंडहरों में पिछले साल किए 'अंधा युग' के मंचन के बाद निर्देशक भानु भारती एक बार फिर वहीं एक बड़ी प्रस्तुति 'तुगलक' लेकर आ रहे हैं। गिरीश कारनाड का यह नाटक सत्तर के दशक में इब्राहीम अलकाजी ने पुराना किला में खेला था। लेकिन फिरोजशाह कोटला का इतिहास तो खुद तुगलक वंश से जुड़ा है। इसे नाटक के नायक मुहम्मद बिन तुगलक के चचेरे भाई और उत्तराधिकारी बने फिरोजशाह तुगलक ने चौदहवीं शताब्दी के मध्य में बनवाया था। लेकिन इस ऐतिहासिक संयोग याकि संगति के अलावा निर्देशक भानु भारती के मुताबिक 'यह नाटक आधुनिक युग के लिए भी उतना ही प्रासंगिक है। सत्तासीन लोगों के इर्द-गिर्द रहने वाले विवेकशून्य लोग शासकों को भी आम जनता के कल्याणकारी काम करने से रोकते हैं। वे दूरदृष्टि वाले शासक के नेक विचारों को भी अपने स्वार्थ के लिए तोड़-मरोड़ कर रख देते हैं।'
गिरीश कारनाड ने अपने नाटक में भारतीय इतिहास के सबसे विवादास्पद चरित्रों में से एक रहे तुगलक को एक नए तरह से देखा था। एक स्वप्नदर्शी शासक, जिसमें बड़े फैसले लेने का साहस था। लेकिन जो अपनी सुगठित राज्य की आकांक्षाओं का वस्तुस्थिति से तालमेल नहीं बैठा पाया। पुराना किला वाली प्रस्तुति के वक्त अपने निर्देशकीय में इब्राहीम अलकाजी ने मुहम्मद बिन तुगलक को एक ऐसे 'प्रतिभाशाली चरित्र' के तौर पर चित्रित करना चाहा था, 'जिसका आधुनिक मन इस विशाल देश को एक राष्ट्र का रूप देने में लगा था'. उस निर्देशकीय में उन्होंने लिखा था- 'तुगलक की सारी विडंबना यही है कि वह एक ऐसा द्रष्टा था जिसके दृष्टिकोण की व्यापकता उसके समकालीनों के लिए अबूझ पहेली थी।' बव कारंत द्वारा किए नाटक के हिंदी अनुवाद की भूमिका में अलकाजी में लिखा- 'कुछ ही वर्षों में तुगलक की गगनचुंबी योजनाएं और स्वप्न धूल में मिल गए। अपनी इच्छाओं की पूर्ति में बाधा बनने वाले सभी व्यक्तियों को उसने मौत के घाट उतार दिया, और अंत में उसने यही पाया कि अपने ही उलझन-भरे अस्तित्व की छायाओं में वह जिंदगी-भर लड़ता रहा। निपट अकेला, शवों के झुंडों से और अपने ही हाथों किए सर्वनाश से घिरा हुआ वह उन्माद के छोर तक पहुंच गया।'
अलकाजी की प्रस्तुति में तुगलक की भूमिका मनोहर सिंह ने की थी, भानु भारती की प्रस्तुति में यह भूमिका राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक और हिंदी सिनेमा में पहचान बना चुके यशपाल शर्मा के सुपुर्द है, जिन्हें लगता है कि ऐसी बड़ी प्रस्तुति के माध्यम से दर्शकों को रंगमंच की ओर आकर्षित किया जा सकता है। भानु भारती याद करते हैं कि सत्तर के शुरुआती दौर में हर युवा अभिनेता तुगलक का किरदार करने का इच्छुक हुआ करता था। उसे लगता था कि 'तुगलक की प्रामाणिकता एक अभिनेता के रूप में साबित करने के लिए यह भूमिका निभानी चाहिए.' उनके मुताबिक इस प्रस्तुति में उन्होंने तुगलक के जीवन के समांतर उसके जीवन दर्शन पर केंद्रित रहने का प्रयास किया है। एक ऐसा शासक और स्वप्नद्रष्टा जो किसी भी कीमत पर सत्ता हासिल करना चाहता था।
तुगलक की छवि इतिहास में एक सनकी शासक की भी रही है, जो अपने फैसले लेने में वस्तुस्थिति की बहुत परवाह नहीं करता था, जिसने हिंदुओं पर से जजिया हटाने का फैसला लिया और अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद ले गया।
यशपाल शर्मा के अलावा अन्य मुख्य भूमिकाओं में हिमानी शिवपुरी, सीताराम पांचाल, रवि खानविल्कर, रवि झंकाल भी प्रस्तुति में हैं। दिल्ली की साहित्य कला परिषद द्वारा आयोजित इस नाट्य प्रस्तुति के प्रदर्शन 28 अक्तूबर से 4 नवंबर तक किए जाएंगे।
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