पैरागुए में जीवन और राजनीति


पैरागुए के लेखक ख्वान मान्वेल मार्कोस के उपन्यास 'एल इन्विएर्नो दे गुंतेर' का अनुवाद हाल में 'गुंतेर की सर्दियां' नाम से प्रकाशित हुआ है। लेखक-अनुवादक प्रभाती नौटियाल ने इसे सीधे स्पानी भाषा से अनूदित किया है। एक जमाने में हुए रूसी उपन्यासों के अनुवाद के अलावा अंग्रेजी को बिचौलिया बनाए बगैर ऐसे सीधे अनुवादों के उदाहरण हिंदी में विरल हैं। इस उपन्यास के मामले में यह इस लिहाज से भी अहम है कि यह एक जटिल पाठ है। उसका मुहावरा अपनी तहों में धीरे-धीरे पाठक के आगे खुलता है। उपन्यास के प्रचलित अनुशासन से पूरी तरह जुदा इस मुहावरे में चल रही बात के बीच में अचानक कुछ ऐसे विवरण 'टपक' पड़ते हैं, जो प्रत्यक्षतः अपनी संदर्भहीनता में थोड़ा उलझाते और कई बार खीझ भी पैदा करते हैं, पर वस्तुतः वे कई बार एक बैकड्रॉप और कई बार एक आभासी मंतव्य होते हैं। पूरा उपन्यास बेतरतीब छोटी-छोटी स्थितियों से लेकर इतिहास और पैरागुए में अस्सी के दशक की राजनीति के संदर्भों तक फैला हुआ है। स्कूल या कॉलेज की किसी कक्षा के दृश्य से लेकर किसी वेश्यालय तक का मंजर उसमें बेतकल्लुफ चले आते हैं। शिक्षक अपने छात्रों को पैराग्वे के ग्वारानी और काराई कबीलाई समाजों के बारे में पढ़ा रहा है, लेकिन लेक्चर देते-देते रह-रहकर उसे एक संभोग के दौरान अपनी पार्टनर की उत्तप्त सक्रियता याद आ रही है। पूरा उपन्यास शिल्पगत उन्मुक्तता का एक नायाब उदाहरण है। इस उन्मुक्तता में एक कहानी बनती है, जिसमें कई स्तरों पर चलती जिंदगी की रंगतें हैं। इसमें कमतर सामाजिक हैसियत की मालिश करने वाली लड़की से शादी का इरादा बनाए हुए अल्बेर्तो है, उसकी बहन वेरोनिका और उसकी सहेली सोलेदाद हैं। इनके अपनी छोटी-छोटी ख्वाहिशें हैं, लेकिन सैनिक सत्ता एक रोज उन्हें गिरफ्तार कर लेती है। मार्कोस बहुत से फुटकर ब्योरों से शहर का परिदृश्य बनाते हैं। उनका हर पात्र एक बिल्कुल अलग किरदार है। कई मौकों पर घटनाएं काफी शांत भाषा में स्थिति के एक छिपे हुए उत्तेजक पहलू को सामने लाती हैं। महादूत गाब्रिएल के भक्त निस्वार्थ फादर मार्सेलिन की मृत्यु की औपचारिकताओं के कुछ अध्याय के बाद पता चलता है कि दरअसल उनकी मौत में आल्बेर्तो का हाथ था। अपनी एक विकृति अल्बेर्तो पर आजमाने की उनकी कोशिश के जवाब में अल्बेर्तो ने उनके कमरे में जहरीला सांप डाल दिया था। फादर के मरने की बात पता चलने से छात्र खुश थे, पर पादरियों ने उन्हें भ्रम देने के लिए उनके जुड़वां भाई को उनकी जगह बुला लिया था। 
उपन्यास में स्थितियों के वर्णन में कई तरह के प्रयोग देखने को मिलते हैं। कहीं एक स्थिति सिर्फ बातचीत के जरिए खुलती है तो कहीं विवरण के जरिए। अंग्रेजी पढ़ाने आई प्रसिद्ध प्रोफेसर एलीसा और निचली हैसियत वाली मालेना की बातचीत में दो चरित्र सामने आते हैं। कहीं कहीं तो कई-कई पैरों के आकार की किंचित अमूर्त 'उदभावनाएं' एक समांतर पाठ की तरह शामिल हैं। इस तरह यह उपन्यास अपने में ही कई शैलियों का सम्मिश्रण है। अभिव्यक्ति के कई तरह के प्रयोग इसमें एक साथ हैं। शायद यह जीवन की बहुस्तरीयता को समेटने का एक उपक्रम हैं। जीवन अपने ऊबड़खाबड़पन में इतनी तरह से निरंतर घटित होता है कि उसे सिर्फ पाठ के भरोसे नहीं समेटा जा सकता। यह उपन्यास उसकी एब्सर्डिटी, उसके अंतरालों और उसके आभासों के साथ संप्रेषण के कई प्रयोग करता है। उसमें 'दहलीज पर लंगर डाले कुत्ते की एक जोड़ी बूढ़ी आंखें गोया दोस्तोवस्की को पढ़ते-पढ़ते थक गई हों' जैसी चमकदार पंक्तियां रह-रह कर दिखाई देती हैं। इस उपन्यास में मार्कोस इतने ज्यादा प्रयोगशील हैं कि बीच-बीच में जब उन्हें रूढ़ किस्म के नैरेटिव पर लौटना पड़ता है, तो उसका सीधा-सपाटपन खटकता भी है : 'ऐसा बिल्कुल नहीं लगता था कि पुलिस को उस घटना की गुत्थियों को सुलझाने में किसी तरह की कोई रुचि थी। इसके विपरीत, ऐसा लगता था कि उस घटना को एक बहाने के रूप में इस्तेमाल कर जून में हुए छात्र-प्रदर्शनों के नेताओं के साथ वह अपना हिसाब चुकता करना चाहती है'। 
बावजूद इसके कि वृहद तौर पर एक निरंकुश राजनीतिक सत्ता उपन्यास की पृष्ठभूमि में निरंतर दिखाई देती है, यह उपन्यास रह-रहकर उस 'माइक्रो रियलिटी' के ब्योरों में जाता है जहां किसी गड्डम़ड्ड इतिहास  से निकलकर आए तरह-तरह के चरित्र अपने स्फुलिंग और जीवन जीने के अपने अभ्यास में एक दुनिया बनाते हैं। मार्कोस के समकालीन तुर्की के ओरहान पामुक के यहां मिलने वाला सर्रियल गठीलापन इसमें नहीं है, बल्कि एक ऐसी तन्मय स्फूर्तता है जिसमें स्थिति की उत्तेजना, उसका सस्पेंस, उसकी वक्रोक्तियां भी साधारण ढंग से बता दिए जाते हैं। विशेष बात यह है कि अपनी गढ़ाव-हीनता में भी उपन्यास की भाषा में एक चित्रात्मकता है, जहां से उसमें पठनीयता की चमक आती है। उपन्यास में उच्च वर्ग से ताल्लुक रखने वाले प्रोटागोनिस्ट गुंतेर दंपति अंत में अपनी ऊंची नौकरियां छोड़कर अपने देश लौटने का निर्णय करते हैं। गुंतेर कहता है- 'किसी लातिीनी अमेरिकी देश का राष्ट्रपति बनने के बजाय यहां के चालीस करोड़ निवासियों में से एक अनाम नागरिक के रूप में संतुष्टि महसूस करना जीवन का ज्यादा बड़ा उद्देश्य है।' यह वो नोट है जहां उपन्यास का सारा बोहेमियन ढांचा एक आकार ग्रहण करता है। ऐसे कई नोट उपन्यास में बीच-बीच में भी दिखाई देते हैं। 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

न्यायप्रियता जहाँ ले जाती है

भीष्म साहनी के नाटक

आनंद रघुनंदन