गोदो जैसे गणतंत्र में



सनसप्तक थिएटर ग्रुप की प्रस्तुति 'रिटर्न ऑफ गोदो' का प्रदर्शन बीते दिनों मुक्तधारा प्रेक्षागृह में किया गया। प्रस्तुति एक प्रहसननुमा कवायद है। निर्देशक तोड़ित मित्रा ने इसमें  'वेटिंग फॉर गोदो' के ढांचे को सूत्र की तरह बरतते हुए 'पहचान के उत्तरआधुनिक संकट' के मसले को 'बेतरतीब शैली' में डिजाइन किया है। यह एक वर्कशॉप प्रोडक्शन है, जिसमें मुख्य दोनों पात्र गोगो और उसका साथी भाभा मंच पर लगातार मौजूद हैं। अपनी वेशभूषा में ये दोनों कॉलेज के छात्र दिखाई देते हैं। प्रस्तुति आगे बढ़ती है तो कई तरह के पात्र उसमें शामिल होते रहते हैं। नाटक का पोजो यहां लगातार मोबाइल पर बात कर रहा है। वह दलालनुमा एक शख्स है। उसकी गाड़ी खींचने वाली शख्स एक बुढ़िया है। उसके गले में पड़ी रस्सी को प्रस्तुति में 'सपनों का फंदा' कहा गया है, 'इसी सपने की डोर से तो हमारी डेमोक्रेसी का झंडा लटकाया गया है'। बुढ़िया लगातार चुप रहती है, या फिर अचानक चीख पड़ती है। जिस गोडो का इंतजार किया जा रहा है, वह असल में कल्कि देवता है जिसके कलियुग में नमूदार होने की बात परंपरा में सुनी जाती रही है। एक पात्र को इस बारे में कुछ भी नहीं पता। वह पूछता है- यह कल्कि क्या गुड़गांव में कहीं रहता है? परंपरा की बात उठने पर एक पात्र कहता है कि परंपरा की नुक्ताचीनी को तो लोकसभा चैनल तक ही सीमित रहने दो। प्रस्तुति ऐसे ही बहुत से असंबद्ध लेकिन चुटीले संवादों और वैसे ही पात्रों का एक कोलाज है। मंच पर रह-रह कर दिखने वाले कई तरह के पात्रों में सड़क पर छोटे-मोटे काम करने वाले दो नौजवान हैं, एक हिजड़ा है, और बाद में गोदो बहुराष्ट्रीय कंपनी के अधिकारी की पोशाक में मंच पर दिखता है। हिजड़े की भूमिका में कार्तिकेय क्षेत्रपाल के अभिनय में अच्छा आत्मविश्वास दिखता है। वो दोनों मुख्य पात्रों से कहता है कि किसी भी जगह ज्यादा देर नहीं बैठना चाहिए, इससे वहां धब्बा पड़ जाता है।...और इंसान भी तो धब्बा ही है। लंबे घाघरे में वो गणतंत्र को गोडो की तरह बताता है, जिसका इंतजार तो है पर वो दिखता नहीं है। इसी तरह ईमान की बात उठने पर एक पात्र बताता है कि उसका एबॉर्शन हो गया है। 
नाटक का गोडो 'भूमंडलीकरण और उदारीकरण की पोशाक में पतित उत्तरआधुनिक बहुराष्ट्रीय निगमों का रूपक' है। निर्देशकीय के मुताबिक नाटक में स्थितियों की अस्तव्यस्तता दरअसल हमारे समकालीन राजनैतिक और सामाजिक अनुभवों को दर्शाती है। वे अनुभव जो एक गहरे विभ्रम के वातावरण में आकार लेते हैं। इस तरह तोड़ित मित्रा सैमुएल बैकेट के नाटक के मुहावरे की एक समकालीन व्यंजना तैयार करते हैं। उनके मुताबिक 'नाटक के दोनों मुख्य पात्र इस सवाल के जवाब की तलाश में हैं कि क्यों उनकी पीढ़ी एक संज्ञाहीन दुर्गति की ओर उन्मुख है. इस क्रम में वे एब्सर्डिटी के घनचक्कर में जा गिरे हैं. नाटक वैश्विक स्थितियों में मध्यवर्ग के तेजी से बदलते अस्थिर हालात को सामने लाता है. मूल्य धुंधले हो चुके हैं, हर ओर उदासीनता है. जो भी सच्चा या खरा माना जाता है, वह मानो एक आभासी यथार्थ में हुआ करता है।'  
प्रस्तुति में बैकड्राप में एक पेड़ बना हुआ है, जहां एकाध दृश्य में एनिमेशन के कुछ प्रयोग दिखाई देते हैं। आगे की ओर बाएं कोने पर पाश्चात्य उपकरणों वाला वैसा ही संगीत पक्ष है, दृश्य परिवर्तनों के दौरान उसपर भी फोकस बनता है।  

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भीष्म साहनी के नाटक

न्यायप्रियता जहाँ ले जाती है

आनंद रघुनंदन