उबू रोय की भूख और हाजमा
पिछले दिनों राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय परिसर के खुले मंच पर वहां के तीसरे वर्ष
के छात्रों की प्रस्तुति उबू रोय के प्रदर्शन किए गए। यह करीब सवा सौ साल
पुराने फ्रेंच नाटक की एक दिलचस्प प्रस्तुति थी। उबू एक भोंडा, विद्रूप, क्रूर,
बेहूदा और पाजी किरदार है। एक वैसी ही उसकी बीवी है। मंच पर ये दोनों टाटों में
लिपटी एक बेडौल काया के तौर पर उपस्थित हैं। इस काया मे वे उजबक ढंग से चल तो सकते
हैं, पर बैठने की कोशिश में लुढ़क पड़ते हैं। उनके अंदर एक अद्वितीय भूख है, जो
विष्ठा को भी हजम कर जाती है। फिर वे एक ऐसे देशकाल में रह रहे हैं जहां इस भूख को
काफी हद तक एक स्वाकार्यता प्राप्त है।
शुरुआती दृश्य में मंच के बीचोबीच ऊंचाई पर एक सूअर टंगा है। और नीचे एक बड़े
से पतीले में सूप पक रहा है। मंच पर जिबह किए जाने से आशंकित या कहीं मुंह मारते
आह्लादित सूअरों के स्वर गूंज रहे हैं। उबू मा गिरे हुए सूअर के थूथन को नोच-नोच कर
खा रही है। उबू दंपती अपनी बातचीत में बिगड़े हुए लौंडों से भी ज्यादा बेधड़क हैं।
उनकी दावत में मंच पर किसी जानवर की खोपड़ी रखी है। दावत में आर्मी चीफ और एक
ट्राली में भरकर लाए गए लोग घटिया सूप को पी कर उबकाई सी करने लगते हैं। उबू के लिए
यह तौहीन नाकाबिले बर्दाश्त है। दोनों उबू मेहमानों से मारपीट शुरू कर देते
हैं।
उबू अपने देश का कल्चर मिनिस्टर है। वह आर्मी चीफ के साथ प्रेसीडेंट को मारने
की योजना बनाता है। प्रेसीडेंट अपनी बीवी और सड़कछाप गालीयुक्त भाषा बोलने वाले
बेटे के साथ एक डबलबेड के आकार की ट्राली पर नमूदार हुआ है। एक बगैर साइलेंसर वाली
मोटर साइकिल से बंधी दूसरी छोटी ट्राली पर एक बंदा टाइपराइटर लिए बैठा है। कोट-पैंट
वाला प्रेसीडेंट देर तक नई कृषि नीति के मसौदा की विशुद्ध बकवास पढ़ रहा है। फिर
ट्राली पर ही कपड़े बदलकर पूरा परिवार वहीं सो जाता है। सुबह प्रेसीडेंट और उसकी
बीवी को लाल रंग के गीले कपड़ों से पीट-पीट कर मार दिया जाता है।
उबू के वैज्ञानिक एक ऐसी मशीन का प्रोटोटाइप पेश करते हैं जिसमें मल से पानी
और बिजली बनाई जाएगी। मशीन काम नहीं कर रही। वैज्ञानिक परेशान हैं। उबू भी परेशान
है। उसे मशीन पर चिढ़ हो रही है। वह एक कोड़ा निकालकर मशीन को पीटना शुरू कर देता
है। एक अन्य दृश्य में वह मनोरंजन का एक कार्यक्रम आयोजित करवाता है। कार्यक्रम में
'कलाकार' मुंह में पानी भरकर एक-दूसरे पर जोरों से फूंक मार रहे हैं। इस तरह फूंक
मार-मार कर एक बाकी सबको हरा देता है।
उबू ने जनता पर तरह-तरह के टैक्स लाद दिए हैं। उसके अत्याचार बढ़ते ही जा रहे
हैं। 32 रुपए कमाने वाले को गरीब नहीं माना जाता। वह एक औरत के दुधमुंहे बच्चे को
उससे छीन कर उछाल देता है। पत्रकार, कलाकार, जज वगैरह को उबू का विरोधी पाए जाने पर
खूंटी पर लटका दिया जाता है। बाद में जब रूस के कम्युनिस्ट उबू की सत्ता को उखाड़
फेंकते हैं तो बेहद घबराया हुआ वह सेंट एंटनी से जान बचाने की हास्यास्पद
आध्यात्मिक गुहार करता है।
फ्रेंच नाटककार अल्फ्रेड जैरी का यह नाटक एक सर्रियल प्रहसन है। इसके मुख्य
पात्र का एक रेखांकन खुद नाटककार ने तैयार किया था। प्रस्तुति के निर्देशक दीपन
शिवरामन लंदन में रंगकर्म के अध्यापन से जुड़े हैं। उनकी दो घंटे लंबी इस प्रस्तुति
में दृश्य के बहुतेरे अवयव हैं। ऊंचे डंडों पर चलने वाले प्रेत, प्रेसीडेंट की बीवी
के सपने में मुंह खोलता-बंद करता एक विशाल पुतला, मशालें, शोर मचाती मोटरसाइकिलें
वगैरह। प्रस्तुति इनसे कुछ ज्यादा ही भरी-भरी लगती है। हालांकि दृश्यों की चमक से
ज्यादा अहम उसमें उबू का धूसर और बेढब किरदार है। शिवरामन उसकी निर्द्वंद्व जैविकता
की एक अच्छी इमेज मंच पर उतार पाए हैं। प्रस्तुति को भारतीय समाज और राजनीति के
वर्तमान दौर का एक रूपक कहा जा सकता है। वहां अत्याचारी होने के लिए बहुत चतुर होने
की आवश्यकता नहीं है, बल्कि एक निर्लज्ज मूर्खता ही इसके लिए काफी है. क्योंकि बाकी
लोग आपसे कम निर्लज्ज हैं। शिवरामन रानावि प्रांगण के आयताकार मंच पर विषय की ठोस
स्थितियां बनाते हैं, जिनका प्रभाव किसी बुरे सपने की तरह देर तक बना रहता है। उबू
एक किरदार नहीं एक प्रवृत्ति है, जो नितांत भौतिक स्तर पर जीने वाले किसी भी घटिया
समाज के सभी लोगों में थोड़ी-थोड़ी बनी रहती है।
संगम जी -- उबू रोय पर आपका लेख बहुत ही अच्छा लगा। कुछ दिन पहले मैंने भी एन.एस.डी. द्वारा उसके मंचन पर छोटा-सा लेख लिखा था : http://kagaaz.wordpress.com/ । आज उबू रोय पर हिन्दी में सामग्री ढूँढ़ रहा था कि मुझे आपका लेख मिला। आश्चर्य की बात यह है कि नाटक के इतने सफ़ल और प्रभावशाली प्रदर्शन के बावजूद हिन्दी में केवल दो ही रीव्यू मिल रहे थे-- आपका और मेरा! विचारणीय बात है। ख़ैर, मुझे यह बात बहुत अच्छी लगी कि आप ने किस तरह से शब्दों द्वारा नाटक के मंचन का सुस्पष्ट और प्रभावशाली दृश्य खड़ा कर दिया। फिलहाल हिन्दी भाषा पर मेरा पकड़ थोड़ा कम है, इसलिये मुझे आप के लेखन से प्रेरणा और उत्साह भी मिल रहे हैं! टाईलर 'प्रवासी'
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