यह नाटक नहीं, श्रद्धांजलि है

एमएस सथ्यू से बातचीत

- थिएटर मे एक बार फिर आप वापस आए हैं। कैसा लग रहा है?
- नहीं, मैं नाटक करता रहा हूं। अभी टैगोर का 'ताशेर देश' हमने कन्नड़ में बंगलौर में किया। इससे पहले कन्नड़ के ही बी सुरेश के मूल आलेख पर 'गिरजा के सपने' किया था। कुछ न कुछ चलता ही रहता है।
- थिएटर और सिनेमा में काम करने में क्या फर्क है?
- अभिनय एक ऐसी चीज है जो हम किसी को सिखा नहीं सकते। फिर भी यह फर्क है कि थिएटर में हम अभिनेता को सिर्फ बता सकते हैं, लेकिन जब वो स्टेज पर होता है तो उसे सब कुछ खुद ही करना होता है, उस क्षण में उसे कुछ बताया नहीं जा सकता। जबकि सिनेमा में सब कुछ आपके नियंत्रण में होता है। जो ठीक नहीं लगा उसे एडिट किया जा सकता है, दोबारा शूट किया जा सकता है।
- आपकी इस प्रस्तुति के पात्रों के चेहरे-मोहरे और कद-काठी वास्तविक किरदारों से काफी मिलते-जुलते हैं। क्या इसके लिए आपको काफी मेहनत करनी पड़ी?
- नहीं, अभी मात्र तीन हफ्ते से ही इनसे परिचय है। ये सब पहले से ही थिएटर में एक्टिंग करते रहे हैं। वैसे चेहरे के मिलान से कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ता है। फिल्म गांधी के बेन किंग्स्ले कहां गांधी जैसे लगते थे। गांधी की तुलना में वे काफी ज्यादा हट्टे-कट्टे थे। गांधी में एक निर्दोष मुस्कान थी जो हासिल करना बहुत मुश्किल था, पर फिर भी किंग्स्ले ने काम तो अच्छा किया।
- नाटक के लिए इस आलेख का चुनाव कैसे हुआ?
- ये हमारे मित्र और नाटक के प्रोड्यूसर के के कोहली साहब ने लिखवाया है। मेरे लिए यह नाटक नहीं बल्कि एक श्रद्धांजलि है। अमृता प्रीतम बहुत बड़ी लेखिका थीं, इमरोज और साहिर भी। इससे पहले इस्मत चुगताई, मंटो, फैज और कैफी के लेखन और शख्सियत पर भी नाटक होते रहे हैं। मैं इसे नाटक न कहकर थिएटर में एक अलग तरह का अनुभव कहूंगा। इसके माध्यम से दर्शक इन शख्सियतों को जानेंगे।
- सुना है कि 'गरम हवा' को दोबारा रिलीज करने की योजना है? यह कब तक होगा?
- हां, उसका प्रिंट बहुत खराब हो गया था। उसे अमेरिका में डिजिटली रेस्टॉर कराया गया है। उसके मोनोट्रैक को डॉल्बी में कराया गया है। यह सब बहुत महंगा काम है। 25 हजार डॉलर तो सिर्फ साउंड रेस्टॉरेशन में ही लगे हैं। इतने में मैं चार गरम हवा बना सकता था। सितंबर में फिल्म को वैश्विक स्तर पर रिलीज किया जाएगा। साथ-साथ उसकी डीवीडी, उसपर किताब, उसकी पटकथा, उसपर डॉकुमेंटरी भी जारी की जाएंगी।
- क्या आपको नहीं लगता कि डॉल्बी तकनीक का शोर 'गरम हवा' की संवेदनशीलता पर असर डालेगा?
- नहीं, आजकल दर्शक तकनीक को जानने लगे हैं। वे अपेक्षा करते हैं।
- आपकी आगे की क्या योजनाएं हैं?
- विद्या बालन को लेकर एक म्यूजिकल बनाने की योजना है। इसमें बनारस, कलकत्ता, मैसूर वगैरह की लोकेशन होंगी। इसमें कई तरह का संगीत इस्तेमाल करने का भी इरादा है। दादरा, ठुमरी, कर्नाटक संगीत, वगैरह।
- आजकल के सिनेमा को लेकर आपकी क्या राय है?
- बहुत अच्छी फिल्में बन रही हैं। हिंदी में देव डी अच्छी फिल्म थी। तमिल, मलयालम और मराठी में बहुत अच्छी फिल्में बन रही हैं। मैंने सुना है धोबी घाट और पीपली लाइव भी अच्छी फिल्में हैं। मणिरत्नम बहुत अच्छी फिल्में बना रहे हैं, हिंदी में अनुराग कश्यप हैं, संजय लीला भंसाली, आशुतोष गोवारिकर हैं। आज की फिल्में नए किस्म की फिल्में हैं।

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