उज्जैन में 'आधे अधूरे'

जयंत देशमुख सिनेमा के जाने-माने सेट डिजाइनर हैं। उनका यह हुनर एमपीएसडी के छात्रों के लिए निर्देशित नाटक ‘आधे अधूरे’ में भी पूरे उरूज पर नुमाया था। मोहन राकेश की सुझाई सीमित सज्जा से परे उनका मंच तरह-तरह के मध्यवर्गीय सामानों से खचाखच भरा हुआ है। काले कोट वाला आदमी कम से कम आधा दर्जन स्विच ऑन करके इस भरे-पुरे मंच को रोशन करता है। असली स्विच की तरह असली वाशबेसिन और उसमें टोंटी से आता असली पानी और असली ड्रैनेज पाइप। दीवारें भी ऐसी हैं कि उ नकी पुताई पुरानी होने से धब्बे उभर आए हैं। फिर किताबों की रैक, डाइनिंग टेबल...और न जाने क्या-क्या! पूरा मंच अपने में ही एक इंस्टालेशन की तरह है। छात्रों से बातचीत के सत्र में उन्होंने इस सेट का एक ‘रेप्लिका’ भी प्रदर्शित किया, जिसके जरिए चीजों को किस स्केल में कैसे बरता जाए आदि बातों की चर्चा हुई। जो भी हो, यह सेट ‘आधे अधूरे’ के यथार्थवाद पर काफी भारी था। निर्देशक ने नाटक के यथार्थ पर तो नहीं लेकिन अभिनेताओं पर उसके हावी होने की बात को कबूल किया, पर यह भी बताया कि इस छात्र-प्रस्तुति में सेट खुद ही एक प्रयोजन के रूप में था। जयंत देशमुख ने नाटक को सामयिक...