अदम गोंडवी की याद
पिछले से पिछले हफ्ते की बात है, गोविंद यादव ने जब बताया कि वह अदम गोंडवी की कविता ‘ चमारों की गली ’ का मंचन करने जा रहे हैं तो मैंने इसकी इत्तेला अदम गोंडवी के भतीजे दिलीप सिंह को भी दे दी। ‘ चमारों की गली ’ सन 1965 में गाँव के एक ठाकुर द्वारा एक दलित लड़की से बलात्कार और उससे जुड़े अन्याय की सच्ची घटना पर लिखी गई लंबी कविता है। इसे लिखने के बाद अदम गोंडवी , जिनका असल नाम रामनाथ सिंह था , को बिरादरी और टोले में अलग-थलग कर दिया गया था, और यह स्थिति आजीवन बनी रही। प्रस्तुति के बाद प्रेक्षागृह से बाहर आते हुए मैंने दिलीप से पूछा कि कविता के पात्रों के अब क्या हाल हैं। उन्होंने बताया- ‘ कृष्णा ’ अभी हैं, लेकिन ‘ मंगल ’ की मौत हो चुकी है ; और ‘ सुखराज सिंह ’ का डंका आज भी गाँव में बोलता है। दिलीप ने अपनी जेब से सौ का नोट निकालते हुए मुझसे पूछा कि हमारे पास ज्यादा तो नहीं है पर क्या हम ये सौ रुपए आभारस्वरूप या पुरस्कारस्वरूप उस लड़की को दे दें जो मंच पर एकल अभिनय कर रही थी। मैंने उन्हें मना किया कि इसका कोई तुक नहीं है। अदम जी का निधन 18 दिसंबर 2011 को लखनऊ के पीजीआई अस्पताल म...