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धन्यवाद

जैसे जेब में रखा रहता है बटुआ जैसे बटुए में रखा रहता है आधार कार्ड उसी तरह मेरी जबान पर रखा रहता है एक शब्द — धन्यवाद   सुबह-सुबह निकल पड़ता हूँ घर से उन चीजों की तलाश में जिन्हें कह सकूँ धन्यवाद टिकटिक करती घड़ी को रुके हुए ट्रैफिक को मुँह बाए खड़ी मौत को सिर नवाकर कहता हूँ धन्यवाद दिन पर दिन विशाल होते जाते शब्दों के ढेर में अर्थहीन होती जाती अभिव्यक्तियों के दरम्यान मुश्किल विचारों को आसान भाषा में कैसे कहूँ इसीलिए जिनके हर काम में है कपट और जो खाते हैं अपने नसीब की उन सभी को कह देता हूँ धन्यवाद धन्यवाद उस परम दयालु ईश्वर को जो हमें परखने के लिए निरंतर बुनता रहता है दुख , आपदाएँ और विरोधाभास ओ मेरे वामपंथी और दक्षिणपंथी भाइयो किसी भी विचारधारा और अंतर्विरोध से बड़ा होता है धन्यवाद बस्ती के लोगो मुझे एक लोटा पानी दो , थोड़ा गुड़ दो ताकि कह दूँ आज के दिन का अंतिम धन्यवाद