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मौन में व्यंजना

युवा रंगकर्मी लोकेश जैन ने पिछले वर्षों के दौरान एक खास तरह के थिएटर में प्रवीणता हासिल की है। वे मंच पर सीमित संसाधनों से एक ऐसी रंगभाषा रचते हैं जो अपने लालित्य, सादगी और लय में प्रभावित करती है। वे मंच पर एक ऐसा काव्यात्मक मुहावरा रचने की कोशिश करते हैं, जिसमें छंद और अमूर्तन एक साथ शामिल है। खास बात यह है कि यह काम वे स्कूल में पढ़ने वाले किशोर उम्र के कलाकारों के साथ करते हैं। सोमवार को नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी सभागार में उन्होंने प्रस्तुति 'ख्वाबों के बुलबुले' का मंचन किया। प्रस्तुति में कोई संवाद नहीं है पर स्थितियों और घटनाओं की सांकेतिकता में एक कथ्य उसमें दिखाई देता है। लगभग सपाट पीली रोशनी में आकार लेती प्रस्तुति में मंच पर कई पात्र पुतुल शैली में उपस्थित हैं। मंजीरे और बांसुरी के स्वरों पर उनकी देहगतियां एक दृश्य रचती हैं। कभी चिड़ियों की चहचहाहट, कभी घड़े में सिक्कों के उछाले जाने का स्वर, फिर ड्रम के रौद्र स्वर, फिर अचानक शांत आलाप...। स्टेज पर आगे की ओर सफेद रंग में लीपा हुआ एक घड़ा रखा है। एक पात्र वैसे ही रंग के लोटे से सूर्य को अर्घ्य चढ़ाने की मुद्रा में है,